राधिका त्रिपाठी II
तब प्यार होता था। मगर मन में दबा कर रह जाती थीं लड़कियां। उस उम्र में कजरी का लगाव हो गया बगल वाले गांव के राम खेलावन से। वह भी दिन रात खेत में मजदूरी करता, तब जाकर उसे एक जून की रोटी नसीब होती। जून की तपती दोपहरी ने उसका रंग पक्का कर दिया था। रंग तो ऐसा जैसा रोड पर बिछा डामर।
जानें क्या कजरी को उसमें भाया था कि वह तो बस उसके खेत में काम करते वक्त तितली की तरह चक्कर लगाने लगी। लाल रंग के फीते से गूंथे दोनों चोटियों में वह हवा के संग उड़ती फिरती। उम्र के सोलहवें बसंत में उसका लगन हो गया। फिर पांच साल बाद गौना तय हुआ। पति की शक्ल तक न देखी थी उसने। उसके मन में तो बस राम खेलावन का डामर सा चेहरा और दो बैलों की जोड़ी बसी थी। गांव में सुना गया था की उसका लगन किसी अच्छे घर में हुआ है। पक्का मकान है। ट्रेक्टर-ट्राली है। खेती-बाड़ी भी खूब है।
…देखते-देखते पांच साल बीत गए। अब कजरी इक्कीस साल की हो चुकी थी। उसके गौने का दिन आ गया था। तैयारी जोर-शोर से हो रही थी। वह अब भी राम खेलावन को चुपके से देखने जाती, लेकिन मुंह से कहती कुछ नहीं। राम खेलावन को इन बातों की कोई भनक नहीं थी वह तो बस जिंदगी को रोटी कमाने का जरिया समझता। घर में भी कोई न था। उसे न कोई फिकर थी, न चिंता। वह अपने बैलों और अपने में कोई अंतर न समझता।
गौने का दिन भी आ गया था आज। कजरी लाल रंग की साड़ी में सज कर एक बार फिरअपने प्रेम को देखने पहुंच गई। लेकिन राम खेलावन खेत पर नहीं था। वह कुछ ही आगे चली। तभी कुछ लोग राम नाम सत्य है… बोलते हुए आते दिखे। उसने उत्सुकतावश बस पूछ लिया कि चचा किसका शव है? भीड़ में से एक ने कहा कि राम खेलावन की लू लगने से मृत्यु हो गई। और वे सब आगे बढ़ गए। कजरी को मानो काठ मार गया। वह वहीं से बदहवास सी भागती रही शव के पीछे। चाचा के पैर पकड़ कर विनती की कि उसे एक बार चेहरा दिखा दें। फिर उन्होंने लोगों से ने कहा, पगली है ये दिखा दो, नहीं तो भागते-भागते श्मशान घाट पहुंच जाएगी।
शव उतारा गया। चेहरा देख कर कजरी लिपट कर रोने लगी। किसी को कुछ समझ नहीं आया। तभी कजरी ने अपने हाथों की चूड़ियां तोड़ दी। माथे से सिंदूर पोंछ दिया। वह राम खेलावन के दोनों बैलों को लेकर कोई विरहा गुनगुनाने हुए खेत किनारे लहलाती फसल देखने लगी। मानो कह रही रही हो कि जीवन का कोई अंत नहीं है ये। मैं तुम्हें सूखने नहीं दूंगी। नई जिंदगी की शुरुआत होगी।