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मथुरा में कदम्ब के पेड़ लगाने पर हो रहा विचार

अश्रुत पूर्वा II

नई दिल्ली। लोक गीत कजरी को संरक्षित करने के साथ अब उत्तर प्रदेश में सांस्कृतिक विरासत वाली दूसरी चीजों को भी सहेजने की पहल हो रही है। इस कड़ी में राज्य सरकार मथुरा में भगवान कृष्ण की पसंद वाले कदम्ब जैसे पेड़ लगाना चाहती है। वह ब्रज परिक्रमा क्षेत्र में धार्मिक ग्रंथों में वर्णित प्राचीन वनों को फिर से वैसा ही बनाना चाहती है। इसके लिए उसने अपने प्राचीन वन क्षेत्रों के पुनर्जन्म की योजना बनाई है। मगर इसमें एक दिक्कत है। क्योंकि मथुरा का यह क्षेत्र ताज ट्रेपेजियम जोन में आता है और इस इलाके में किसी भी कार्य के लिए शीर्ष अदालत की अनुमति आवश्यक है।
खबरों के मुताबिक राज्य सरकार के वन विभाग ने अपनी अर्जी में कहा है कि वह एक पर्यावरण-पुनर्स्थापना अभियान शुरू करना चाहता है। इसमें देसी चौड़ी पत्ती वाली प्रजातियों का रोपण किया जाएगा। खास तौर से उन्हें जो भगवान कृष्ण को प्रिय मानी जाती हैं। इनमें कदम्ब जैसी देसी प्रजातियों के अलावा बरगद, अर्जुन, पलाश, बहेड़ा, पीपल, तमाल, पीलू, पाखड़, मौलश्री, खिरानी और आम आदि वृक्षों की प्रजातियां शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी अर्जी में कहा है कि इस इलाके में लगे प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा एक आक्रामक विदेशी प्रजाति है। इन्हें उखाड़ने की इजाजत दी जाए क्योंकि यह पर्यावरण के लिए खतरनाक है। शीर्ष न्यायालय में दायर अर्जी में राज्य के वन विभाग ने मथुरा के आसपास के वन क्षेत्रों में इन पेड़ों को हटाने की इजाजत मांगी है। उसने कहा है कि देसी पेड़ों के रोपण से न केवल पुष्प जैव विविधता फिर से स्थापित होगी, बल्कि पशु जैव विविधता में भी खासी वृद्धि होगी।
वन विभाग ने दावा किया है कि मथुरा मंडल में 137 प्राचीन वन हैं। जिनका भारत के धार्मिक ग्रंथों में जिक्र मिलता है। उनमें से 48 वन 48 देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और इसलिए ब्रज मंडल परिक्रमा का हिस्सा है। तीर्थयात्री परिक्रमा के हिस्से के रूप में इन प्राचीन जंगलों की पूजा करते हैं। चार जंगल एक ही नाम और उसी जगह पर मौजूद हैं जैसा शास्त्रों में जिक्र है। बाकी 37 का पता लगा लिया गया है। सात और स्थानों की पहचान करने की प्रक्रिया जारी है। कहा गया कि 37 में से 26 आरक्षित वन क्षेत्रों में आते हैं और 11 सामुदायिक या निजी भूूमि के रूप में चिह्नित हैं। (मीडिया में आए समाचार पर आधारित)

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