सर्वेश्वरदयाल सक्सेना II
निराशा की उंची काली दीवार में
भी बहुत छोटे रोशनदान-सी
जड़ी रहती है कोई न कोई आकांक्षा
जिसमें उजाला फंसा रहता है
और कबूतर पंख फड़फड़ा
कर निकल जाते हैं,
कोई सुख बड़ा नहीं होता
कोई दुख छोटा नहीं होता।
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना II
निराशा की उंची काली दीवार में
भी बहुत छोटे रोशनदान-सी
जड़ी रहती है कोई न कोई आकांक्षा
जिसमें उजाला फंसा रहता है
और कबूतर पंख फड़फड़ा
कर निकल जाते हैं,
कोई सुख बड़ा नहीं होता
कोई दुख छोटा नहीं होता।