कविता काव्य कौमुदी

कोई दुख छोटा नहीं होता

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना II

निराशा की उंची काली दीवार में
भी बहुत छोटे रोशनदान-सी
जड़ी रहती है कोई न कोई आकांक्षा
जिसमें उजाला फंसा रहता है
और कबूतर पंख फड़फड़ा
कर निकल जाते हैं,
कोई सुख बड़ा नहीं होता
कोई दुख छोटा नहीं होता।

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ashrutpurva

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