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हिंदी पाठकों से भी रूबरू हो चुके हैं फॉसे

अश्रुत पूर्वा II

नई दिल्ली। साल 2023 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार पाने वाले नॉर्वे के लेखक जॉन फॉसे की हिंदी में पहली बार 2016 में कृति प्रकाश्ति हुई थी। इसे वाणी प्रकाशन ने छापा था। तेजी ग्रोवर ने जॉन केउपन्यास का हिंदी में अनुवाद किया था। जिसका शीर्षक ‘आग के पास आलिस’ है। यह कभी न विस्मृत होने वाले प्रेम की टोह लेता है। यह प्रेम तथा अभाव पर मनन कर उसे एक ऊंचा दर्जा प्रदान करती ऐसी दुर्लभ कृति है जो पाठकों में काफी लोकप्रिय रही है।
फॉसे की पुस्तक की हिंदी अनुवादक तेजी ग्रोवर स्कैन्डिनेवियन साहित्य की जानकार हैं। उन्होंने कई यूरोपीय लेखकों का हिंदी में अनुवाद किया है। इस मौके पर वाणी प्रकाशन समूह के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी ने कहा कि हमें बेहद प्रसन्तता है कि जॉन फॉसे को इस वर्ष नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। हम सभी की ओर से उनको बधाई। वाणी प्रकाशन सदा अंतरराष्ट्रीय अनुवादों को प्रकाशित करता रहा है। इसमें अनुवादकों का बड़ा योगदान है। हम उन्हें सांस्कृतिक राजदूत मानते हैं। प्रतिष्ठित कवयित्री और कलाकार तेजी ग्रोवर को भी बधाई क्योंकि उन्होंने सात वर्ष पहले ही फॉसे का परिचय हिंदी पाठकों से कराया।  इस साहित्यिक आदान-प्रदान के लिए भारत में नॉर्वे दूतावास भी बधाई के पात्र है।
दुनिया भर में सर्वाधिक मंचित यूरोपीय नाटककार जॉन फॉसे का जन्म हाउगेसुण्ड, नॉर्वे में 29 सितंबर 1959 को हुआ था। उनके लेखन ने नॉर्वे के साहित्य को एक वैश्विक उपस्थिति प्रदान की है। नाटक, उपन्यास, निबंध और कविता की उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। उनकी कई कृतियों के अनुवाद दुनिया के विभिन्न भाषाओं में हो चुके हैं।
जॉन फॉसे को इससे पहले अपने देश और यूरोपीय साहित्य के लगभग सभी प्रमुख पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा जा चुका है। उन्हें नॉर्वे की राजधानी ओस्लो के शाही महल के परिसर में आजीवन लेखकीय आवास भी मिला है जिसका नाम है ग्रोटेन। यह नॉर्वे की कला और संस्कृति में अहम योगदान के लिए किसी एक लेखक को मिलने वाला सबसे प्रतिष्ठित सम्मान है।

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