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अमेरिकी कवयित्री लुइस ने दुनिया को कहा अलविदा

 अश्रुत पूर्वा II

नई दिल्ली। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमेरिकी कवयित्री लुइन ग्लुक का पिछले दिनों निधन हो गया।  वे 80 वर्ष की थीं। वे पूर्वी यूरोपीय यहूदियों के वंशज से ताल्लुक रखती थीं। उनका पालन-पोषण लॉन्ग आइलैंड में हुआ था। उनके पिता डेनियल ग्लूक कारोबारी थे, जिन्हें आंशिक रूप से एक्स-एक्टो चाकू का आविष्कार करने का श्रेय दिया जाता है। लुइस की मां बीट्राइस ग्लूक एक गृहिणी थीं।
लुइस का जन्म न्यूयॉर्क में हुआ था। उन्होंने सराह लॉरेंस कॉलेज और कोलंबिया विश्वविद्यालय में पढ़ाई की। लेखक के रूप में काम करते हुए उन्होंने कई संस्थानों में कविता पढ़ाई। लुइस को पुलित्जर पुरस्कार के अलावा उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। साल 2020 के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गाय था।
लुइस ग्लूक अपनी कविताओं में साफगोई के लिए जानी जाती थीं। उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार देने वाली स्वीडिस एकेडमी ने कहा कि लुइस की कविताएं प्राय: बाल्यावस्था, पारिवारिक जीवन, माता-पिता और भाई-बहनों के साथ घनिष्ठ संबंधों पर केंद्रित थीं।
येल विश्वविद्यालय में ग्लूक को पहली बार 1968 में ‘फर्स्टबॉर्न’ नामक काव्य संग्रह के लिए प्रशंसा मिली थी। बाद में इस कविता की वजह से ग्लूक समकालीन अमेरिका में प्रसिद्ध कवियों और निबंधकारों में से एक बन गई थीं। वे न्यूयॉर्क की मूल निवासी थीं। अपने जीवनकाल में निबंध और लघु कथाएं लिखीं। कविताओं पर एक दर्जन से अधिक किताबें प्रकाशित हुर्इं। उनका लेखन शेक्सपियर और एलियट से भी प्रभावित था। लुइस ग्लुक की ज्यादातर कविताओं में जहां आत्म कथात्मक तत्व मिलते हैं, वहीं मिथक, इतिहास और प्रकृति भी है। फर्स्ट बोर्न, द हाउस आॅन मार्श लैंड ,सेवेन एजेस, अ विलेज लाइफ  और अवेर्नो उनके चर्चित काव्य संग्रह हैं।  

कवयित्री लुइस की दो अनूदित कविताएं  

कबूलनामा
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यह कहना कि मुझे डर नहीं लगता
सही नहीं होगा
हर किसी की तरह मुझे भी
बीमारी, अपमान से डर लगता हैं
अगरचे मैंने उसे छिपाना सीख लिया है
पूर्णता से अपने को बचाने के लिए
सभी खुशियां मुकद्दर के गुस्से को न्योता देती हैं
वे बर्बर बहने हैं  
आखिरकार उनमें ईर्ष्या के सिवा
कोई संवेदना नहीं होती

कामना
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उस पल को याद करो
जब तुमने यह कामना की थी
मैं अनगिनत कामनाएं करती रहती हूं

उस समय मैंने तितली के बारे में झूठ बोला था
मैं हमेशा चकित होती हूं
कि तुम्हारी कामना क्या है

तुम क्या सोचते हो कि मैंने किसकी कामना की होगी
मैं नहीं जानती कि मैं वापस लौटूंगी
कि हम आखिर में किसी भी
सूरत में एक साथ होंगे
मैं वही कामना करती हूं जिसकी कामना मैंने हमेशा की
मैं अगली कविता की कामना करती हूं।
(साभार/ अनुवाद : विनोद दास)

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