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सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों के लिए खोला पहला स्कूल, बनेगा राष्ट्रीय स्मारक

अश्रुत पूर्वा संवाद II

नई दिल्ली। भिड़ेवाड़ा में महात्मा ज्योति बा फूले और सावित्रीबाई फुले की ओर से लड़कियों के लिए शुरू किए गए देश के पहले स्कूल को अब राष्ट्रीय स्मारक बनाने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। पिछले दिनों बंबई हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय स्मारक बनाने के विरोध में दायर याचिका रद्द कर दी और राष्ट्रीय स्मारक बनाने का स्पष्ट आदेश दे दिया है। हाई कोर्ट के फैसले आने के बाद पुणे सहित पूरे महाराष्ट्र में खुशी की लहर दौड़ गई है।  
भिड़ेवाड़ा स्थित सावित्रीबाई फुले द्वारा 175 साल पहले बनाए गए लड़कियों के पहले स्कूल की जगह पर राष्ट्रीय स्मारक बनाने की मांग को लेकर पिछले 30 साल से आंदोलन चल रहा था।
पुणे शहर अपने ऐतिहासिक धरोहरों के लिए विख्यात है। पुणे के प्रसिद्ध श्रीमंत दगडुशेठ हलवाई गणपति मंदिर से थोड़ा आगे बुधवार पेठ है। इन दोनों जगह के बीच भारत में लड़कियों के लिए पहले स्कूल की शुरुआत हुई थी। इस 2500 स्क्वायर फीट क्षेत्र को भिडेÞवाडा कहा जाता है। इसी के एक भवन में 1848 में तात्यासाहेब भिडे ने ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले को जगह दी थी, जहां उन्होंने विद्यालय शुरू किया था। इस समय स्कूल का भवन पूरी तरह से जर्जर हो गया है।  
नागरिकों ने हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने कहा है कि अब कोई बाधा नहीं है। जल्द ही लड़कियों के लिए नया स्कूल और राष्ट्रीय स्मारक बना दिया जाएगा। अखिल भारतीय महात्मा फुले समता परिषद के प्रमुख और महाराष्ट्र सरकार के नागरिक खाद्य आपूर्ति मंत्री छगन भुजबल ने कहा है कि मुंबई हाई कोर्ट ने स्मारक विरोधियों की उस याचिका को रद्द कर दिया जो उन्होंने 2010 में सुप्रीम कोर्ट में दायर किया था। अब स्मारक निर्माण के लिए महाराष्ट्र सरकार अनुपूरक बजट में स्मारक परियोजना के लिए वित्तीय आबंटन करेगी, जिसे राज्य विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा।
पुणे में सावित्रीबाई फुले की सातवीं पीढ़ी के उत्तराधिकारी और भिड़ेवाड़ा बचाओ मुहिम के अध्यक्ष प्रशांत फुले और सावित्रीबाई सेवा फाउंडेशन की राष्ट्रीय सचिव हेमलता म्हस्के सहित अनेक नागरिकों और विभिन्न राजनीतिक दलों तथा संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने प्रस्तावित राष्ट्रीय स्मारक स्थल पर जाकर खुशी जताई। सभी ने एक दूसरे को बधाई दीं। भारतीय शोषित सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुभाष बिहारी ने तो खुशी जताते हुए यह घोषणा भी कर दी कि देश की प्रथम शिक्षिका सावित्रीबाई फुले के जन्मदिन तीन जनवरी 2024 को उनकी याद में दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर का बड़े समारोह का आयोजन किया जाएगा। इसमें सावित्रीबाई फुले और इनकी सहयोगी रहीं फातिमा शेख के योगदानों पर विशद चर्चा होगी और उनके संदेशों को देश भर में फैलाने के लिए विभिन्न राज्यों की महिलाओं को विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदानों के लिए उनको सम्मानित किया जाएगा।
भिड़ेवाड़ा में जब महात्मा फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों के लिए एक स्कूल की नींव एक जनवरी 1848 में डाली तो रूढ़िवादियों ने काफी विरोध किया। उस समय भारतीय समाज में कोई भी लड़कियों को पढ़ाना तो दूर कल्पना भी नहीं करता था। लड़कियों को पढ़ाना गलत समझा जाता था। फिर भी सावित्रीबाई फुले ने नौ अलग-अलग समुदायों की लड़कियों को लेकर पहला स्कूल भिड़ेवाड़ा में खोला। रूढ़िवादी इतने नाराज  थे कि सावित्री बाई स्कूल पढ़ाने जब निकलती थीं तो उन पर पत्थर फेंके जाते थे। कभी गोबर तो कभी मैला भी फेंका जाता। मगर सावित्रीबाई घबराई नहीं। अपने फैसले पर कायम रहीं। अपनी सूझबूझ और हिम्मत के कारण उन्होंने एक साल के भीतर ही पुणे में लड़कियों के पांच और नए स्कूल खोले। इन स्कूलों में लड़कियों की पढ़ाई की गुणवत्ता इतनी बेहतर थी कि सरकारी स्कूलों के विद्यार्थी उनसे पिछड़ने लगे थे।
सावित्रीबाई का जीवन बेहद ही मुश्किलों भरा रहा। न केवल दलित बल्कि सवर्ण महिलाओं के उत्थान के लिए भी काम करने, छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाने के कारण उन्हें एक बड़े वर्ग द्वारा काफी विरोध झेलना पड़ा। अब उम्मीद है सावित्रीबाई द्वारा स्थापित स्कूल का नवीनीकरण होगा। लड़कियां वहां फिर से पढ़ेंगीं। सावित्रीबाई फुले की याद अक्षुण्ण बनी रहेगी।

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