अश्रुत तत्क्षण

ब्रह्मांड को समझने से भी कहीं अधिक कठिन है कविता को समझना

अश्रुत पूर्वा II

नई दिल्ली। जैसे प्रकृति को समझना कठिन है, मनुष्य को समझना कठिन है, विज्ञान को समझना कठिन है, इस ब्रह्मांड को समझना कठिन है, उससे कहीं अधिक कठिन है कविता को समझना। कविता संबंधी अपने विचार प्रस्तुत करते हुए जानी-मानी लेखक, आलोचक व संपादक सरोज कुमारी ने यह बात कही। वे अपनी पुस्तक ‘कविता सिद्धांत विमर्श’ के लोकार्पण  के बाद बोल रही थीं। समारोह साहित्य अकादेमी सभागार में हुआ। इसे संवाद एवं हंस प्रकाशन के संयुक्ततत्त्वाधान में आयोजित किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ आलोचक व लोक कवि चंद्रदेव यादव ने की। मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ गीतकार व आलोचक ओम निश्चल, प्रसिद्घ शायर नरेश शांडिल्य, प्रबुद्ध आलोचक मुकेश मिरोठा मौजूद थे। पुस्तक की संपादक सरोज कुमारी भी इस अवसर पक उपस्थित थीं।
इस कार्यक्रम में कविता क्या है, उसकी परिभाषा क्या है? जैसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठते रहे। लगभग सभी वक्ताओं ने कविता संबंधी अपने-अपने विचार रखे। साहित्य अध्येताओं के लिए यह कोई नया प्रश्न नहीं है। हिंदी साहित्य में खड़ी बोली हिंदी के शिक्षक कहे जाने वाले आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी कविता के विषय में कहते हैं कि जब तक ज्ञान वृद्धि नहीं होती, सभ्यता का जमाना नहीं आता, तब तक कविता की उन्नति होगी। जैसे-जैसे बुद्धि में वृद्धि होती जाएगी कविता क्षीण होती जाएगी। हिंदी आलोचना की रीढ़ कहे जाने वाले आचार्य रामचंद्र शुक्ल कविता को प्राणदायिनी शक्ति कह कर संबोधित करते हैं। अपने ‘कविता क्या है’ निबंध में वह बताते हैं कि मानुषी प्रकृति को जागृत रखने के लिए ईश्वर ने कविता रूपी औषधि बनाई है। कविता उच्चाशय, उदार और निस्वार्थ हृदय की उपज है।
वक्ताओं ने यह भी कहा कि छायावाद के प्रमुख स्तंभ जयशंकर प्रसाद कहते हैं कि काव्य आत्मा की संकल्पात्मक अनुभूति है जिसका संबंध विश्लेषण, विकल्प या विज्ञान से नहीं है। इसका सीधा सा आशय है कि सभी विद्वानों ने एकमत होकर कविता को भाव प्रधान माना है। वरिष्ठ आलोचक व लोक कवि चंद्रदेव यादव भी जयशंकर प्रसाद की उपरोक्त परिभाषा का जिक्र किया और पुस्तक की सराहना करते हुए कहा कि कविता संबंधी सैद्धांतिक निबंधों का यह संग्रह अधूरा होकर भी अपने आप में परिपूर्ण है।
इसी क्रम में दिनकर भी याद आते हैं, जो कहते हैं कि काव्य का मूल हेतु कवि का अपना स्वभाव है। कविता और कुछ नहीं, कवि का कर्म है अर्थात कविता कवि के आंतरिक व्यक्तित्व का प्रस्वेद है। कार्यक्रम में नरेश शांडिल्य ने दिनकर के ‘युद्ध और कविता’ निबंध का जिक्र किया और कविता संबंधी अपने विचारों को प्रेषित करते हुए कहा कि युद्ध और संघर्ष के बिना कविता जन्म नहीं लेती। रामायण और महाभारत भी युद्ध और संघर्ष की कविता है।
मुख्य वक्ता वरिष्ठ गीतकार व आलोचक ओम निश्चल ने कहा कि कविता के सैद्धांतिक पक्ष से संबंधित निबंधों का यह संग्रह हिंदी के विद्यार्थियों और शोधार्थियों के साथ-साथ समस्त अकादमिक जगत के लिए लाभकारी व मूल्यवान है। प्रबुद्ध आलोचक मुकेश मिरोठा ने पुस्तक की विविधता के विषय में कहा कि इस निबंध संग्रह में स्त्री, दलित, आदिवासी तथा अन्य वर्गों के निबंधकारों व आलोचना दृष्टि की कमी है।
पुस्तक की संपादक सरोज कुमारी ने कहा कि यह पुस्तक इन निबंधों की पहली कड़ी के रूप में प्रकाशित हुई है। आने वाले अन्य भागों में स्त्री, दलित, आदिवासी कविता की सैद्धांतिक दृष्टियों को पूर्ण रूप से इसमें स्थान दिया जाएगा।
लोकार्पण कार्यक्रम में प्रसिद्घ कत्थक नृत्यांगना हरप्रीत कौर और कवि तेजप्रताप ने भी कविता संबंधित अपने विचार प्रस्तुत किए। इस कार्यक्रम का सुव्यवस्थित संचालन सुशील द्विवेदी और धन्यवाद ज्ञापन हंस प्रकाशन के अधिष्ठाता हरेन्द्र तिवारी ने किया।
सरोज कुमारी द्वारा संपादित पुस्तक ‘कविता सिद्धांत विमर्श’ कविता के सैद्धांतिक पक्षों से संबंधी हिंदी के विद्वान आलोचकों  के 21 निबंधों का  संकलन है। इस संग्रह में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के छह निबंधों को संकलित किया गया है। जिसमें कविता, कवि और कविता, कवियों की उर्मिला विषयक उदासीनता, कविता का भविष्य, नायिका-भेद और कवि-कर्त्तव्य हैं। इस संग्रह में आचार्य शुक्ल द्वारा रचित ‘कविता क्या है’, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित ‘कविता’, छायावाद के प्रमुख स्तंभ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘काव्य और कला’ निबंध को स्थान दिया गया है। रामधारी सिंह दिनकर के चार निबंध-‘कविता में परिवेश और मूल्य’, ‘युद्ध और कविता’, ‘कविता राजनीति और विज्ञान’, कविता का भविष्य को शामिल किया गया है।
इसी क्रम में मुक्तिबोध का निबंध ‘काव्य की रचना प्रक्रिया’ भाग-1 व भाग-2 को भी स्थान दिया गया है। आचार्य नगेंद्र के तीन निबंध-‘कविता क्या है, काव्य भाषा और व्यवहार भाषा’, ‘सौंदर्यानुभूति का स्वरूप’ को इस निबंध संग्रह में सुरक्षित किया गया है। समकालीन रचनाकार अशोक वाजपेयी का ‘वितान और विस्तार’ तथा राजेश जोशी का ‘समकालीन कविता के संकट’ निबंध को भी सहेजा गया है। इस निबंध संग्रह में कविता संबंधी सैद्धांतिक दृष्टि को समझने के लिए एकमात्र स्त्री रचनाकार महादेवी वर्मा के ‘काव्य कला’ निबंध को चयनित किया गया है। (समाचार स्रोत : ज्योति मिश्रा)

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