नई दिल्ली (अश्रुत पूर्वा)।
लेखिका, कवयित्री और महिला अधिकार कार्यकर्ता कमला भसीन का शनिवार को निधन हो गया। वे कुछ महीने से कैंसर से पीड़ित थीं। उनका इलाज चल रहा था। कमला महिला आंदोलन की एक प्रमुख आवाज रही हैं। ऐसा माना जाता है कि देश में प्रदर्शन स्थलों पर गूंजने वाले ‘आजादी’ के नारे को कमला भसीन ने ही पितृसत्तात्मक व्यवस्था के खिलाफ नारीवादी नारे के रूप में लोकप्रिय बनाया था। कमला का तड़के लगभग तीन बजे दिल्ली के एक अस्पताल में निधन हुआ। लोगों ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।
इतिहासकार एस इरफान हबीब ने कहा, ‘प्रिय मित्र और एक असाधारण शख्सियत कमला के निधन के बारे में सुन कर बहुत दुख हुआ। हम कल ही उनके स्वास्थ्य के बारे में चर्चा कर रहे थे, लेकिन कभी नहीं सोचा कि वह हमें अगले दिन ही छोड़ कर चली जाएंगी। आप बहुत याद आएंगी।’
लेखक और राजनेता शशि थरूर ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करने के लिए ट्विटर का सहारा लिया। उन्होंने भसीन की कविता साझा करते हुए एक संदेश पोस्ट किया, ‘महिला सशक्तिकरण की आवाज, बालिका शिक्षा की नायिका, अमर कवयित्री प्रेरणादायी कमला भसीन को विदाई।’ अभिनेत्री शबाना आजनी ने भी ट्वीट कर शोक जताया है। उन्होंने कहा कि उनकी कमी शिद्दत से महसूस की जाएगी। उन्होंने जिंदगी को बेहतरीन रूप से जिया।
सामाजिक कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव ने ट्वीट किया, यह भारत और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में महिला आंदोलन के लिए बड़ा झटका है। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने जिंदादिली से जीवन जिया। कमला आप हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगी।’
लेखिका कमला भसीन का जन्म 24 अप्रैल 1946 को हुआ था। उन्होंने महिलाओं के लिए सत्तर के दशक में काम करना शुरू किया था। वे न केवल एक महिला अधिकार कार्यकर्ता थीं, बल्कि परोपकारी महिला भी थीं। उन्होंने हिमाचल में जागोरी और राजस्थान में ‘स्कूल फॉर डेमोक्रेसी’ जैसे कई अच्छे जनहित संस्थानों की स्थापना की और उनकी स्थापना में मदद भी की। कमला ने नारीवाद और पितृसत्ता को समझने के लिए कई पुस्तकें भी लिखीं। उनकी कई किताबों का अनुवाद भी हुआ। उन्होंने कई पीढ़ियों पर व्यापक प्रभाव डाला है और वह हमेशा बना रहेगा। वह जीवन से प्यार करती थीं, लोगों से प्यार करती थीं। एक बार कमला ने कहा था कि सोच कर देखिए अगर महिलाएं कह दें कि या तो हमारे साथ सही से व्यवहार करें नहीं तो हम बच्चा पैदा नहीं करेंगे। तब क्या होगा? होगा ये कि सेनाएं ठप हो जाएंगी। मानव संसाधन आप कहां से लाएंगे?
सेव द चिल्ड्रन इंडिया ने एक ट्वीट में कहा, ‘आपकी विरासत आशा के गीतों और साहसपूर्ण लेखन में जीवित रहेगी। आंदोलन की भावना परिवर्तन को प्रज्वलित करती रहेगी। हर लड़की के लिए समानता भाव लाने की दिशा में आपकी परिवर्तनकारी मुहिम प्रेरित करती रहेगी।’ (इनपुट एजंसी)
और अंत में कमला भसीन की कविता
हवाओं सी बन रही हैं लड़कियां
उन्हें बैखौफ चलने में मजा आता है,
उन्हें मंजूर नहीं बेवजह रोका जाना
परिंदों सी बन रही हैं लड़कियां,
उन्हें उड़ने में मजा आता है
उन्हें मंजूर नहीं उनके परों का काटा जाना
फूलों सी बन रही हैं लड़कियां।
-कमला भसीन
कोटिशः नमन ।विनम्र श्रद्धांजलि।
ऊँ शांति ऊँ शांति ऊँ शांति
💐🙏