अश्रुत पूर्वा विशेष II
नई दिल्ली। उस मासूम का क्या कसूर था। न खुद को बचा सकती थी वह और न प्रतिकार कर सकती थी। उसे तो यह भी नहीं पता था कि उसके साथ क्या हो रहा है। मगर जो भी हो रहा था, बहुत बुरा हो रहा था। और ऐसी जगह हो रहा था जहां कुछ ही दूर पंडाल में साक्षात मां विराजमान थीं। महिषासुर का वध करने वाली मां भी उस मासूम की चीख नहीं सुन पाईं। यह घटना ऐसे समय हुई जब नवरात्र अपने शिखर पर था। हम सब भक्ति में आकंठ डूबे थे। कोई उस अबोध को बचा नहीं पाया और वह दैत्य अपनी पिपासा मिटा कर वहां से भाग गया। बच्ची बच गई। चिकित्सीय जांच में पुष्टि हो गई। यह पिछले साल की बात है, मगर क्या वह इस घटना को ताउम्र भूल पाएगी? उसकी आत्मा पर पड़े खरोंच को कोई देख पाएगा? इस खबर को पढ़ते हुए हम सब की आत्मा आहत हुई।
देश में पिछले दिनों लड़कियों और बच्चियों के साथ जिस तरह कि घटनाएं हो रही हैं उससे भारतीय जन मानस विचलित है। पुरुषों में मर्यादा और पुरुषोत्तम का न जाने कहां लोप हो गया है। वह घर से लेकर बाहर तक की स्त्रियों पर बुरी निगाह रखता है। जीवन भर मां या पत्नी को सताने वाले पुरुष जब नौ दिन मां की पूजा करते हैं तो उनका दोगलापन और उनका ढकोसला ही सामने आता है। ये वहीं लोग हैं जो मां को जगाने का आह्वान करते हैं। और खुद अंधकार में असुर बन जाते हैं। अरे मूर्खों मां कभी सोती है? वह तो खुद में प्रकृति है। वह दिन-रात जागती है। तुम्हारे बच्चों के लिए। नवरात्रि में भी तुमने मां के प्रतिरूप को नहीं बख्शा। तुम्हारे पौरुष पर लानत है।
स्त्री के रूप में मां दुर्गा का साहस, मां लक्ष्मी का वैभव और ऐश्वर्य तथा मां सरस्वती से विद्वता मिली है। वे प्रकृति और मां का ही स्वरूप हैं। वह अलग-अलग रूपों में आपके साथ जुड़ी हैं। आपके साथ यह जीवन यात्रा पूरी कर चल देंगी। इसके बाद फिर किसी रिश्ते की डोर से बंधने आएंगी। उन सभी रूपों को प्रणाम कीजिए। आप भी उनका सम्मान कीजिए। दोस्त बनिए। भाई बनिए। पिता बनिए। सच्चा प्रेमी बनिए। मगर दैत्य मत बनिए। अपने भीतर जन्म लेने वाले दरिंदे को मारिए। तभी इस धरती की स्त्रियां सुरक्षित रहेंगी। आप भी सुरक्षित रहेंगे।
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