ग़ज़ल/हज़ल

सूफिया ज़ैदी की ग़ज़लें

चित्र : साभार गूगल

सूफिया ज़ैदी II

इधर पड़े हैं खंजर तो आरी कहाँ है,
वतन की खातिर अब ज़िम्मेदारी कहाँ है।

फैला है इस.कदर ये खौ.फ क्यूँ वतन में,
हवा में नफ़रतों की चिंगारी कहाँ है।

है हौसला आँधी में करें दीया रौशन,
हिम्मत हमारी अभी हारी कहाँ है।

करते हैं लोग मातम हाल पर सब मेरे,
चेहरे पर मगर उनके सोगवारी कहाँ है।

रहती है उदास ‘सूफिया’ यादों में तेरी,
दिन अपना कहाँ रात हमारी कहाँ है।

2-

प्यार पर मुझे अपने इत्मिनान है,
इन्तज़ार ही शायद मेरा इम्तिहान है।

कहता नही कभी लबों से कुछ भी,
दर्द- ए- दिल मेरा बेज़ुबान है ।

नही जगह दी मैने किसी अपने को भी,
सूना ही पड़ा मेरे दिल का मकान है।

होता ही नही मिलन यहाँ किसी का,
दुश्मन प्यार का ये सारा जहान है।

गमों को अश्.कों मे बहाकर ‘सूफिया’
लबों से मुस्कुराना बहुत आसान है।

About the author

सूफ़ीया ज़ैदी

सूफिया ज़ैदी

शैक्षिक योग्यता_स्नातक

मै एक गृहिणी हूँ । स्कूल टाईम से लेखन कार्य का शौक़ रहा है । सबसे पहले अपनी एक आत्मकथा लिखी थी । फिर आल इंडिया रेडियो पर 'कहानी एक गीत की' कार्यक्रम मे एक फिल्मी गीत सुनवाया जाता था उस पर अनेक बार कहानी लिखी जो ब्रोडकास्ट भी हुईं ।
फिर जब से फेसबुक से जुड़ी यहाँ अनेक लोग जो मेरी तरह लिखने का शौक़ रखते हैं उनकी रचनाओं को पढ़ा तो लगा कि मैं भी कविता लिखूँ और जब अपनी कविताओं पर प्रतिक्रियाएँ मिली तो हौसला बढ़ता गया।फिर गज़लें भी लिखी और वाहवाही मिली। स्वासित पत्रिका , दिल्ली से प्रकाशित अखबार 'इन दिनो', भोपाल से प्रकाशित निर्दलीय अखबार में भी मेरी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं।

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