मनस्वी अपर्णा II
सभी के सामने सर को झुका कर लौट आते हैं
गलत बातों पे भी हम मुस्कुरा कर लौट आते हैं
//१//
अदाकारी ये दुनिया की बदौलत सीख ली हमने
हकीकत आजकल अपनी छुपा कर लौट आते हैं
//२//
बड़ी उम्मीद से उस दर पे जाते हैं वहां से हम
खुशी दिल की, हंसी लब की लुटा कर लौट आते हैं
//३//
चिरागे आरजू कुछ सोच कर पहले जलाते हैं
जला कर फिर उसे खुद ही बुझा कर लौट आते हैं
//४//
मजे लेने को अक्सर हाल जब भी पूछते हैं लोग
कोई झूठी कहानी हम सुना कर लौट आते हैं
//५//