ग़ज़ल/हज़ल

हकीकत आजकल अपनी छुपा कर लौट आते हैं

मनस्वी अपर्णा II

सभी के सामने सर को झुका कर लौट आते हैं
गलत बातों पे भी हम मुस्कुरा कर लौट आते हैं
//१//

अदाकारी ये दुनिया की बदौलत सीख ली हमने
हकीकत आजकल अपनी छुपा कर लौट आते हैं
//२//

बड़ी उम्मीद से उस दर पे जाते हैं वहां से हम
खुशी दिल की, हंसी लब की लुटा कर लौट आते हैं
//३//

चिरागे आरजू कुछ सोच कर पहले जलाते हैं  
जला कर फिर उसे खुद ही बुझा कर लौट आते हैं
//४//

मजे लेने को अक्सर हाल जब भी पूछते हैं लोग
कोई झूठी कहानी हम सुना कर लौट आते हैं
//५//

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ashrutpurva

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