रुद्र ‘रामिश’ II
बारहा ख़ुद से पूछता हूँ मैं!
क्या है ये ख़ल्क़* और क्या हूँ मैं!!
याद आई तेरी तो याद आया,
अब तुझे भूलने लगा हूँ मैं!!
इश्क़ ने भी जिसे नहीं पूछा,
हाँ,उसी ग़म का आसरा हूँ मैं!!
चश्म-ए-बेबाक का अदब तू है,
हुस्न-ए-बेपर्दा की हया हूँ मैं!!
जिसमें बहती है ख़ुद नदी ही नदीम*,
उस सफ़ीने का नाख़ुदा हूँ मैं!!
हो नहीं पाया ख़ुद मैं अपना ही,
फिर कहा किसने आपका हूँ मैं!!
जो सुनी जाये बन्द करके गोश, क़ल्बे-यज़दाँ की वो सदा हूँ मैं!!
ख़ल्क़~सृष्टि
नदीम~ दोस्त
गोश~ कान
क़ल्बे-यज़दाँ~ ईश्वर का हृदय)