काव्य कौमुदी ग़ज़ल/हज़ल

मेरे कातिले सितमगर तू बचा के रखना खुद को …

मनस्वी अपर्णा II

न मिला नजर यूं मुझसे मेरा दिल मचल न जाए
तेरी सांस की तपिश से मेरा जिस्म जल न जाए
//१//

मेरे लब पे हाथ रख दे कि बहक रहा है आलम
कोई बात बेखुदी में जुबां से निकल न जाए
//२//

तेरा इंतजार लाजिम है बराए वक़्त लेकिन
यूं ही राह तकते-तकते मेरी उम्र ढल न जाए
//३//

मेरे कातिले सितमगर तू बचा के रखना खुद को
तेरा तीर ये पलटकर कहीं तुझ पे चल न जाए
//४//

मेरे मेहरबान बढ़ के इसे थाम वक़्त रहते
तेरे थामने से पहले कहीं दिल संभल न जाए
//५//

है अजीब कशमकश सी जो रोके ही जा रही है
वो जो बात है जुबां पर कहीं फिर से टल न जाए
//६//

तू पयामे इश्क कासिद जरा सब्र से सुनाना
कहीं सुनते ही खुशी से मेरा दम निकल न जाए
//७//

About the author

मनस्वी अपर्णा

मनस्वी अपर्णा ने हिंदी गजल लेखन में हाल के बरसों में अपनी एक खास पहचान बनाई है। वे अपनी रचनाओं से गंभीर बातें भी बड़ी सहजता से कह देती हैं। उनकी शायरी में रूमानियत चांदनी की तरह मन के दरीचे पर उतर आती है। चांद की रोशनी में नहाई उनकी ग़ज़लें नीली स्याही में डुबकी ल्गाती है और कलम का मुंह चूम लेती हैं। वे क्या खूब लिखती हैं-
जैसे कि गुमशुदा मेरा आराम हो गया
ये जिस्म हाय दर्द का गोदाम हो गया..

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