ग़ज़ल/हज़ल

आज अपना सच बताना है मुझे

मनस्वी अपर्णा II

मैं हूं औरत! आज अपना सच बताना है मुझे
मेंहदी की मानिंद पिस के रंग लाना है मुझे

//१//
बोझ कह कर टाल ही सकती नहीं मैं क्या करूं
फर्ज़ तो ताज़िंदगी हंस कर निभाना है मुझे

//२//
मेरे आंचल में हर इक रिश्ते की खातिर है फकत
प्यार की दौलत, जिसे खुल कर लुटाना है मुझे

//३//
मैं कि अनचाहा सा कोई बोझ हूं हर रिश्ते पे
दाग ये माथे से अपने अब मिटाना है मुझे

//४//
फर्ज़  अपने सब निभा कर हक से क्यूं महरूम हूं
जिदगानी अपनी शर्तों पर बिताना है मुझे
//५//

About the author

मनस्वी अपर्णा

मनस्वी अपर्णा ने हिंदी गजल लेखन में हाल के बरसों में अपनी एक खास पहचान बनाई है। वे अपनी रचनाओं से गंभीर बातें भी बड़ी सहजता से कह देती हैं। उनकी शायरी में रूमानियत चांदनी की तरह मन के दरीचे पर उतर आती है। चांद की रोशनी में नहाई उनकी ग़ज़लें नीली स्याही में डुबकी ल्गाती है और कलम का मुंह चूम लेती हैं। वे क्या खूब लिखती हैं-
जैसे कि गुमशुदा मेरा आराम हो गया
ये जिस्म हाय दर्द का गोदाम हो गया..

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