काव्य कौमुदी ग़ज़ल/हज़ल

उजाड़ आंखों में अब कोई ख्वाब क्या होगा

मनस्वी अपर्णा II

मुनाफकत से बुरा तो जनाब क्या होगा
अजाब ये नहीं तो फिर अजाब क्या होगा //१//

हमारा रहनुमा ही गुमशुदा ओ गाफिल है
सफर में इससे जियादा खराब क्या होगा //२//

हिसाब आप लगा लीजिए मेरी खातिर
कि बेहिसाब गमों का हिसाब क्या होगा //३//

सवाल हश्रे तआल्लुक पे कर तो लें लेकिन
हमें खबर है तुम्हारा जवाब क्या होगा //४//

तुम्हारे नाम से बदनाम हैं जमाने में
अजीम इससे कोई भी खिताब क्या होगा //५//

किसी के खौफ से खुद को बुझा दिया जिसने
वो होगा और कोई आफताब क्या होगा //६//

हरेक सिम्त हमारी है बदगुमानी फिर
हमारी जीस्त से बढ़ कर सराब क्या होगा //७//

हमीं ने अश्कों को खुद बढ़के इ़ंतखाब किया
उजाड़ आंखों में अब कोई ख़्वाब क्या होगा //८//

खुदाई चल रही किस एहतिमाम से अब तक
ये इल्म ही नहीं है तो सवाब क्या होगा //९//

About the author

मनस्वी अपर्णा

मनस्वी अपर्णा ने हिंदी गजल लेखन में हाल के बरसों में अपनी एक खास पहचान बनाई है। वे अपनी रचनाओं से गंभीर बातें भी बड़ी सहजता से कह देती हैं। उनकी शायरी में रूमानियत चांदनी की तरह मन के दरीचे पर उतर आती है। चांद की रोशनी में नहाई उनकी ग़ज़लें नीली स्याही में डुबकी ल्गाती है और कलम का मुंह चूम लेती हैं। वे क्या खूब लिखती हैं-
जैसे कि गुमशुदा मेरा आराम हो गया
ये जिस्म हाय दर्द का गोदाम हो गया..

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