व्यंग्य (गद्य/पद्य) हास्य-व्यंग्य

एक अनाम कवि का आख्यान

भारत यायावर II 

एक  आशु कवि थे । उनकी कविता सुनकर कुछ लोग उनको  आँसू कवि भी कहते  थे ।हर बात पर कविता लिखने के बावजूद लोग उनको देखते ही भाग जाते थे । वे अपने अकेलेपन में रहते थे और अबतक   वे अनाम थे ,लेकिन   कुछ लोग उनको धाँसू कवि भी कहते थे ।  वे हर बात पर काव्य पंक्ति लिख देते थे । चूँकि वे संस्कृतज्ञ थे तो शब्दों को सटाकर लिखते थे और समझते थे कि इस तरह हिन्दी संस्कृत की तरह जड़ी भाषा होगी । लेकिन उनकी कविताओं में लय होने के बावजूद अर्थ नामक जीव लापता रहता था । उनकी कविता का एक उदाहरण देखिए  : झमझमाझमझमनाचेंकूदेंकम।

एक बार वे एक मिठाई की दुकान में बैठकर चाय पी रहे थे । तभी उनके कप पर एक मक्खी बैठ गयी । उस मक्खी को उड़ाने के बाद  उन्होंने कागज पर इस  प्रकरण  को इस तरह लिखा, ” भोरभयोतबजागगयो, होटलजायतबचायमँगायो । मक्खीआईउड़तीफिरती । तबहाथघुमायउसकोभगायो। “

कवि जी बहुत खुश हुए कि एक कविता तैयार हो गई ।

दुकान के सामने एक बरतन में दही रखा हुआ था । अचानक एक काग ने आकर दही में अपनी चोंच गड़ा दी । दुकानदार दही के पास ही खड़ा होकर बून्दिया तल रहा था । झँझरे से उसने फुर्ती से प्रहार किया और काग का काम तमाम हो गया ।

कवि जी के भीतर आदि कवि की आत्मा सवार हो गई । उनके भीतर से बाहर आने के लिए कविता की  एक पंक्ति छटपटाने लगी । जेब में कागज़ के सब टुकड़े कविता से लबालब भरे हुए थे । तब उन्होंने कोयले के एक टुकड़े से इस दृश्य  पर  दुकान के सामने के बोर्ड पर यह पंक्ति लिख दी :  कागदहीपरजानगँवायो । उनका तात्पर्य था  : काग दही पर जान गँवायो । यह कविता उनकी धीरे-धीरे विश्व प्रसिद्ध हो गई । कैसे?  यह जानने के लिए आगे पढ़ें।

कुछ देर के बाद एक कथाकार लल्लन जी वहाँ चाय पीने आए। वे रोज दस पृष्ठ कथा लिखते थे , लेकिन उनको कोई महत्त्व नहीं देता था । कोई कमाई नहीं थी । प्रकाशक किताब छापने के लिए मोटी रकम माँगता था । पत्नी और बच्चे भी ताना मारते थे । तंगहाली का जीवन था । उन्होंने कागदहीपरजानँगवायो को पढ़ा: कागद पर ही जान गँवायो। यह बात उनके मर्म को छू गई । वे सोचने लगे मैंने भी अपना जीवन लिख-लिखकर बेकार कर लिया । ठीक लिखा है,  खूब लिखा है । लेकिन आर्थिक दिक्कत में ही रहा । इस अनाम कवि ने मानों मुझे ही कहा है  :  कागद पर ही जान गँवायो !

कुछ देर के बाद एक प्रेम में  पागल  बना हुआ आदमी   वहाँ आया । वह देर रात तक अपनी प्रेमिका को याद कर जाम पर जाम पीता रहता था । उसने कागदहीपरजानगँवायो को पढ़ा  : का गदही पर प्राण गँवायो । इस पंक्ति से उनकी अंतर्दृष्टि खुल गई । सच कहा है इस कवि ने । तब से उन्होंने प्रेमिका को याद करना और पीना ही छोड़ दिया ।

लोक जीवन में विख्यात   मैंने  इस प्रकरण को विस्तार से लिखा और  उसे फेसबुक पर लगाया तो देखा कि एक आलोचक इस चुटकुले को छपरा ले गये और कहा  :  छपरासेहीबाहरआयो । पटना के एक कवि को यह बहुत पसंद आया तो पट से प्रतिक्रिया दी  : पटनामेंबसजानगँवायो।

इस विश्वविख्यात कवि की मुख्तसर सी कहानी है । उनका जन्म बेगूसराय में हुआ था । दिनकर की तरह महान बनने के लिए उन्होंने पटना में रहना तय किया । एक बार सर्वशब्दसमायोजक नामक सिद्धान्त को अपनाने का विचार किया और अपना नया वाद चलाया । कोई उनकी कविताओं को समझता नहीं था , इसका उनको भारी मलाल था । वे मजबूर थे और जिन्दा रहने के लिए मजदूर थे ।

लेकिन कागदहीपरजानगवायो इतना मशहूर हुआ कि लोग इस कविता पंक्ति को तो याद रख लिए और इस कवि  को ही भूल गए और वे अनाम ही रह गये ।

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भारत यायावर

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