अतुल मिश्र II
‘देश के ऊपर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं।’ भाषण वाले मंच पर मंडराते चील-कौओं की ओर इशारा करते हुए नेताओं ने उस भीड़ को हकीकत से अवगत कराया, जो हर चुनाव में यह डरावना वाक्य सुनने की आदी हो चुकी थी। भीड़ पर जब इस महावाक्य का कोई असर होता हुआ नहीं दिखाई दिया और नेता को लगा कि भीड़ अब समझदार हो गई है, तो उसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया-
‘किसी भी वक्त हम पर परमाणु-हमला हो सकता है। इसीलिए भाइयों, मैं फिर कहूंगा कि हमारी पार्टी को सरकार बनाने का मौका दें, ताकि हम इन तमाम चुनौतियों का मुंहतोड़ जवाब दे सकें। इसके बिना हम कोई जवाब नहीं दे पाएंगे।’
लोगों ने नेता की बात को कुछ इस अंदाज से लिया, जैसे बारिश के दिनों में बूंदें टपकती हैं, वैसे ही परमाणु बम टपकेंगे और उसके बाद भाषण सुनने के लिए आसमान फिर साफ हो जाएगा।
‘हमें इस वक़्त एकजुट होकर उस आतंकवाद से भी लड़ना है, जो हमारी विपक्षी पार्टी की सरकार के जमाने में पनपा था। इसे कुचलना हमारी प्राथमिकता होगी और विपक्षी कुछ भी कहें, हम इसे कुचल कर ही दम लेंगे।’ ऐसे बयान देते वक्त कहीं खुद का दम न निकल जाए, इस गरज से नेता ने पानी का पूरा गिलास हलक में उतार लिया।
‘खतरा चारों ओर से हमारे मुल्क को है और चारों ओर सत्ता के भूखे लोग चुनाव लड़ रहे हैं, इसलिए यह फैसला अब आप लोगों को ही करना है कि अपना कीमती वोट आप किसे देंगे?’ नेता ने अपने सत्ता में रहने को भूखा न रहने की अहम वजह बताए बिना भीड़ को खतरनाक किस्म के तमाम खतरों से भी आगाह किया।
‘पहले हमने अपनी जनता से जो वादे किए थे, वे अगले पांच वर्षो तक पूरे कर दिए जाएंगे, यह हमारा वादा है।’ शुरू में ही कही जाने वाली बात से अपने भाषण का समापन करने के बाद नेता जी हेलिकॉप्टर में बैठ कर दूसरी जगह देश पर मंडराते खतरे बताने के लिए चल दिए।
हेलिकॉप्टर के पंखों से उड़े धूल के गुबार में लोगों को अब तमाम किस्म के खतरे नजर आने लगे थे।