देवेश भारतवासी II
अक्सर आपने कई लोगों के मुंह से यह सुना होगा कि लड़िकयों के लिए सबसे बेहतर प्रोफेशन डॉक्टर या टीचर है। भारत में डॉक्टर बनने के लिए आपको नीट की परीक्षा देनी होती है। साल 2020 के नीट के आंकड़ों के अनुसार कुल 16 लाख बच्चों ने नीट का फॉर्म भरा, जिसमें करीब नौ लाख तो लड़िकयां ही थीं। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आज लड़िकयां बढ़-चढ़ कर इस प्रोफेशन में आना चाहती हैं, लेकिन क्या यह हमेशा से ऐसा ही था? क्या आज से सौ-दो सौ साल पहले भी लड़िकयों में इस प्रोफेशन को लेकर ऐसी ही खुमारी थी? लेखिका कविता राव की किताब ‘लेडी डॉक्टर्स’ में इन सब सवालों के जवाब हैं।
कविता राव पेशे से पत्रकार हैं और अंग्रेजी के नामी अख़बारों के लिए लिखती हैं। उन्होंने अपनी किताब के माध्यम से छह लड़िकयों की कहानियां प्रस्तुत की हैं। वो छह लड़िकयां जो देश में सबसे पहले डॉक्टर बनीं, वो छह लड़िकयां जिन्होंने समाज से लड़ कर खुद को साबित किया। वो छह लड़िकयां जिन्होंने इस प्रोफेशन को पूरी तरह बदल दिया। कविता ने एक-एक पात्रों पर रिसर्च किया हैं।
किताब की शुरुआत तमाम छोटी-छोटी कहानियों से होती है। जिससे यह पता चलता है कि 1850 से 1930 के आसपास का दौर कैसा था। भारत के साथ-साथ यूरोप और अमेरिका के भी तमाम किस्से सुन कर यही भान होता है कि स्थिति डांवाडोल थी। लड़िकयों को पढाई-लिखाई से दूर रखा जाता था। उन्हें बस उतना ही पढ़ने का अधिकार था, जिससे कि वे पत्र लिख सकें, अख़बार पढ़ सकें और घर के घरेलू काम कर सकें। फिर भी ऐसी लड़िकयां आगे अरइं जो नजीर बन र्गइं।
कविता राव की एक कहानी है-डॉ. जेम्स बैरी नामक एक सर्जन थे। पूरे ब्रिटेन में उन्हें माचो मैन कहा जाता था। महिलाओं के बीच वे बेहद लोकप्रिय थे। ब्रिटेन की लड़िकयां उनकी दीवानी थीं। साल 1865 में जब उनका देहांत हुआ तो पता चला की जेम्स पुरुष नहीं अपितु महिला थी। जीवन भर उन्होंने खुद को पुरुष के तौर पर पेश किया ताकि वे डॉक्टर बन कर समाज की सेवा कर सकें। एक महिला होने के नाते वे खुद को ऐसा तैयार करते थीं कि कोई उन्हें पकड़ ही न पाए। इसके पीछे यह कारण था कि समाज स्वीकार नहीं कर पाता था लड़िकयों को चिकित्सा व्यवसाय में। ऐसे तमाम किस्से कविता राव ने किताब के शुरुआती हिस्से में रखा है, लेकिन किताब की असली शुरुआत होती है, आनंदी बाई जोशी से।
- लेखिका कविता राव पेशे से पत्रकार हैं और अंग्रेजी के नामी अख़बारों के लिए लिखती हैं। उन्होंने अपनी किताब ‘लेडी डॉक्टर्स’ के माध्यम से छह लड़कियों की कहानियां प्रस्तुत की हैं। वो छह लड़कियां जो देश में सबसे पहले डॉक्टर बनीं, वो छह लड़कियां जिन्होंने समाज से लड़ कर खुद को साबित किया। वो छह लड़कियां जिन्होंने इस प्रोफेशन को पूरी तरह बदल दिया। कविता ने एक-एक पात्रों पर रिसर्च किया हैं।
कविता राव एक-एक कर छह लड़िकयों की कहानी सुनाती हैं। आनंदी बाई जोशी, कादंबिनी गांगुली, रखमाबाई राउत, हैमबती सेन, मुत्थुलक्ष्मी रेड्डी और मैरी। एक-एक की कहानी यहां रखी जा सकती है। मगर संक्षेप में यहां जिक्र। मसलन, कैसे तेरह साल की एक लड़की तीस साल के पुरुष से ब्याही जाती है और डॉक्टर बन जाती है। कैसे दस साल की विधवा, जिसे घर छोड़ना पड़ता है वह डॉक्टर बन जाती है। बाल विवाह की शिकार हुई एक मासूम बच्ची कैसे कोर्ट-कचहरी का सामना करते हुए डॉक्टर बन जाती है, यह सब जानने के लिए कविता राव की पुस्तक लेडी डॉक्टर्स पढ़नी होगी।
हमारे पाठ्यक्रम में इनकी कहानियां क्यों नहीं हैं? हम सब इन्हें आज क्यों भूल गए? आजादी से पहले के मुकाबले भारत की स्थिति आज से बिलकुल अलग थी। आज भी गांव-देहात में लड़िकयों को पढ़ने नहीं दिया जाता। सोचिए सौ-दो सौ साल पहले क्या स्थिति रही होगी? फेमिनिज्म के नाम पर अक्सर कुछ अराजक तत्व दुर्व्यवहार करते हैं, उन सभी तत्वों को यह किताब एक बार पढ़नी चाहिए ताकि उन्हें मालूम हो सके कि केरल की एक लड़की जब यूरोप जाती है तो उसके रंग को लेकर डेढ़ सौ साल पहले मजाक उड़ाया जाता है। बावजूद इसके कठिन परिश्रम से वह मेडिकल कॉलेज टॉप करती है। ऐसे लोगों को हम सब क्यों भूूल रहे हैं?
कविता राव ने इन सभी महिला डाक्टरों के बारे में यह दस्तावेज हम सब के बीच रखा। किताब की भाषा सहज है। वेस्टलैंड ने इस किताब का प्रकाशन किया है। कई प्रसंगों में ऐसा लगा कि यह बात लिखे बिना भी काम चल सकता था. लेकिन कोई लेखक जब कुछ लिखता है तो वह स्वतंत्रता के साथ लिखता है, उसे कई बातें जरूरी लगती हैं, कई गैरजरूरी भी। पाठक की यह जिम्मेदारी होती है कि जरूरी बातों को मन में रख कर आगे बढे़।
अगर आप स्त्रीशक्ति बेहतरीन पढ़ना चाहते हैं तो यह किताब आपके लिए है। निश्चित तौर पर कविता राव की लेखनी आपको अच्छी लगेगी। यह किताब आपके जीवन में बहुत से तथ्य और किस्से जोड़ देगी जो समय-समय पर आपको प्रेरित करते रहेंगे।
पुस्तक- लेडी डॉक्टर्स
प्रकाशक-वेस्टलैंड
पेपरबैक संस्करण- 347 रुपए
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