देवेश भारतवासी II
‘अंग्रेजी माध्यम का भ्र्रमजाल’ संक्रांत सानु द्वारा लिखी किताब द इंग्लिश मीडियम मिथ का हिंदी अनुवाद है। यह अनुवाद सुभाष दुआ ने किया है। किताब की शुरुआत में संक्रांत अपने पुराने दिनों को याद करते हैं जब वे आईआईटी में छात्र थे। एक बस यात्रा के दौरान उन्हें एक ग्रामीण मिलता है जिससे वे भाषा पर बातचीत करने लगते हैं। वह संक्रांत जी से कहता है कि भाषाएं बहती नदियों का अनुसरण करती हैं। यानी जहां नदियों की धार से तेज आवाज उठती है वहां के लोगों की भाषा भी तेज होती है। यह बात संक्रांत जी को सोचने पर विवश कर देती है। उस ग्रामीण व्यक्ति से बातचीत का ही नतीजा था कि यह किताब संक्रांत जी ने उस घटना के बीत जाने के कई सालों बाद लिखा।
भारत में धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या महज चार फीसद है। फिर भी अंग्रेजी का वर्चस्व भारतीय समाज में बढ़ रहा है। नीलोत्पल मृणाल ने एक बार कहा था कि अंग्रेजी व्यापार की भाषा है और हिंदी प्यार की भाषा। अंग्रेजी सीखने-बोलने की मांग इसलिए बढ़ रही है क्योंकि अंग्रेजी में रोजगार है। संक्रांत जी ने इस किताब को कुल तीन हिस्सों में लिखा है।
पहले हिस्से में उन्होंने आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिणाम के बारे में ज़िक्र किया है। सानु जी द्वारा वैश्विक पटल पर अंग्रेजी की दशा एवं दिशा पर शोध किया गया है। किताब में बताया गया है कि विश्व के जो सर्वाधिक 20 सबसे अमीर देश हैं, उनमें सिर्फ चार ऐसे देश हैं जहां की भाषा अंग्रेजी है। बाकी 16 सबसे अमीर देश अपने मातृभाषा में ही सभी काम करते हैं। वहीं दुनिया के सर्वाधिक 20 सबसे गरीब देशों का भी आंकड़ा पेश किया गया है। आंकड़ों के अनुसार 20 सबसे गरीब देशों में से 14 देश ऐसे हैं जिनकी मातृभाषा अंग्रेजी है। और वो सभी देश कभी न कभी किसी देश के गुलाम रहे हैं। सानु जी इसके पीछे का कारण गुलामी बताते हैं। उनके अनुसार गुलाम देशों पर जबरदस्ती अंग्रेजी भाषा थोप दी जाती है। इस कारण गुलाम रह चुके देशों का आत्मविश्वास कमजोर या खत्म हो जाता है। भारत में यह हाल इसीलिए हुआ क्योंकि हमारे ऊपर अंग्रेजों द्वारा अंग्रेजी थोप दी गई।
भारत में धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या महज चार फीसद है। फिर भी अंग्रेजी का वर्चस्व भारतीय समाज में बढ़ रहा है। नीलोत्पल मृणाल ने एक बार कहा था कि अंग्रेजी व्यापार की भाषा है और हिंदी प्यार की भाषा। अंग्रेजी सीखने-बोलने की मांग इसलिए बढ़ रही है क्योंकि अंग्रेजी में रोजगार है। संक्रांत जी ने इस किताब को कुल तीन हिस्सों में लिखा है।
फोटो : साभार गूगल
दूसरे हिस्से में एक नई सोच की आवश्यकता पर लेखक ने जोर दिया है। संक्रांत सानु ने चीन का उदाहरण दिया है। चीन में अगर कोई विदेशी छात्र जाता है और अगर वो मंदारिन (चीन की भाषा) सीखता है तो चीनी सरकार उसे छात्रवृत्ति देती है। अक्सर विदेशी छात्र मंदारिन भाषा मात्र इसीलिए सीख लेते हैं ताकि उनके पॉकेट खर्च के पैसे सरकार से मिलते रहें। इस तरह चीन अपनी भाषा नए लोगों तक पहुंचाने में कामयाब होता जा रहा है। यह प्रयोग भारत में क्यों नहीं किया जा सकता? सानु जी ने भारतीय लोगों पर भी चिंता ज़ाहिर की है। उनका मानना है कि भारत की एक बड़ी आबादी न ठीक से हिंदी जानती है न ही अंग्रेजी। वह अब हिंगलिश का इस्तेमाल कर रही है. जो हिंदी और अंग्रेजी का मिश्रण है। ऐसे में हम कैसे बचा सकेंगे अपनी भाषा को?
तीसरे हिस्से में लेखक ने कुछ नीतिगत सुझाव दिए हैं जिससे हिंदी भाषा को मजबूती दी जा सकती है। उन्होंने हिब्रू भाषा की केस स्टडी भी पेश की है. जिसमें उन्होंने बताया है कि इजराइल ने कैसे हिब्रू भाषा को पूरे देश में मजबूती दी। माइक्रोसॉफ्ट के एक डाटा का इस्तेमाल करते हुए लेखक ने बताया है कि वैश्विक पटल पर कुल 91 फीसद लोग हैं जो गैर-अंग्रेजी भाषी हैं। बावजूद इसके आज अंग्रेजी ग्लोबल भाषा बन गई है।
इस किताब को क्यों पढ़ना चाहिए? अगर आप हिंदी भाषा से संबंधित तमाम आंकड़े जानना चाहते हैं तो यह किताब जरूर पढ़ें। संक्रांत सानु ने इस किताब के माध्यम से तमाम आयामों पर प्रकाश डाला है। अंग्रेजी न जानने से कितने बच्चों ने आत्महत्या कर सी उनमें से कुछ की केस स्टडी भी इस किताब में पेश की गई है। हालांकि इस किताब के हिंदी अनुवाद के साथ इंसाफ नहीं किया गया है। कमजोर अनुवाद के चलते यह किताब कई जगह बोझिल लगने लगती है। यह किताब प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित की गई है। अमेजन पर इसकी कीमत सौ रुपए है।
लेखक : संक्रांत सानु
पुस्तक : ‘अंग्रेजी माध्यम का भ्र्रमजाल’
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
मूल्य : सौ रुपए
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