व्यंग्य (गद्य/पद्य)

खुलना पत्तों का

फोटो : साभार गूगल

हरीश नवल II

उस दिन वे मुझे बहुत दिनों बाद मिले। मिलते ही बोले, … गुरु जी हमेशा की तरह मैं आपसे कुछ जानकारी लेना चाहता हूं। कृपया मुझे बताएं कि ये कौन से पत्ते होते हैं जो खुलते हैं इनके खुलने का इंतजार बड़ी बेसब्री से किया जाता है, ये कैसे होते हैं और कहां होते हैं। इसके साथ ही मुझे यह भी बताएं क्या ये पत्ते बंद रहते है…?

मैं सोच की नदी में कूदा जरूर, लेकिन मुझे उस समय कुछ न सुझाए मैंने उनसे कहा, नागरिक भाई मैं अभी किसी जरूरी काम से जा रहा हूँ, कल सुबह यहीं चौक में मिलेंगे नौ बजे। यह सुन कर वे टा-टा करके विदा हो गए और मैं अपने घर की ओर लौट पड़ा। मुझे कोई जरूरी काम नहीं था, अब मेरे लिए पत्तों के बारे में विचार करना सबसे जरूरी था।

घर में आते ही मैं नागरिक जी की गुत्थी सुलझाने में जुट गया। मेरे सामने पहला सवाल यह था कि पत्ते क्या होते हैं, मेरे दिमाग ने बताया कि पत्ते वृक्षों के होते हैं जिनमें पीपल के पत्ते महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं इनका प्रयोग पूजा में किया जाता है। केले के पत्ते बहुत बड़े होते हैं, दक्षिण भारत में उन पर भोजन परोसा जाता है। बंगाल में शादी-ब्याह में उनकी भूमिका होती है। नीम के पत्ते चिकित्सा में काम लिए जाते हैं। आम के पत्ते का वंदनवार बनता है। इसी प्रकार और भी अनेक वृक्षों के पत्ते काम आते हैं जिनसे अनेक दवाइयां बनती हैं, बीड़ी भी बनती है, दोने भी बनाए जाते हैं, पत्तल का निर्माण भी होता है आदि-आदि।

एक विशेष पत्ते होते हैं जिनसे पान बनाया जाता है। कह सकते है कि पान का देश में एक बड़ा उद्योग है जिसके साथ चूना, कत्था, सौंफ, इलायची, लौंग आदि के सहायक उद्योग भी भारत में खूब पनप रहे हैं, यह उद्योग ‘पीक’ (अंग्रेजी वाली) पर है।

  • पीपल के पत्तों के लिए कहा गया ‘पीपरा के पतवा सरीखे डोले मनवा, चल आज देशवा की ओर…’ हां इनकी हिलोर बहुत मायने रखती है। अब इनके खुलने की तो कोई बात है ही नहीं। वह तो खुले ही रहते हैं। भारत का लोकतंत्र पीपल (अंग्रेजी वाला) पर ही टिका है।

हठात दिमाग ने अधिक जागृत होने पर सुझाया कि ताश के पत्ते भी बहुत महत्त्व रखते हैं जिनकी संख्या बावन होती है, जो चार प्रकार के होते हैं और जिनके दो रंग देखे जाते हैं।

अब सवाल था कि पत्ते खुलते कैसे हैं, लेकिन इस सवाल से भी पहले एक और सवाल सीना ताने खड़ा हो गया कि क्या पत्ते बंद रहते हैं, बंद रहते है तो कहां बंद रहते हैं और इन्हें कहां-कहां अनेक साधनों से भेजा जाता है, जहां वे खुलते हैं, धुलते हैं और काम में लिए जाते हैं। इनके खुलने पर कोई सवाल-जवाब नहीं मांगा जाता।

पीपल के पत्तों के लिए कहा गया ‘पीपरा के पतवा सरीखे डोले मनवा, चल आज देशवा की ओर…’ हां इनकी हिलोर बहुत मायने रखती है। अब इनके खुलने की तो कोई बात है ही नहीं। वह तो खुले ही रहते हैं। भारत का लोकतंत्र पीपल (अंग्रेजी वाला) पर ही टिका है।

पान के पत्ते कुछ जानने को मजबूर करते हैं क्योंकि पान ताश में भी होता है। अंग्रेजी में, इसे हार्ट यानी ‘दिल’ कहा जाता है। दिल अर्थात सर्वशक्तिमान। यह अगर बंद हो जाए तो समझो ‘खेल खत्म’ ओह! तो ताश का पत्ता बंद होता है, इस विचार ने मुझे न्यूटन बना दिया। अब बात समझ में आने लगी कि बंद होने का मामला ताश से सर्वाधिक जुड़ा हुआ है।

ताश के पत्ते यानी ‘बाजी’। ताश की बाजी में कुछ खेल ऐसे हैं जिनमें पत्ते बंद रखे जाते हैं और निर्णय के अवसर पर खोले जाते हैं। ऐसी ताश की बाजी ‘फ्लैश’ में होती है, यह एक प्रकार का जुआ है। इसमें एक पद्धति ‘ब्लाइंड’ खेलने की है। बाजी के अंत में तीनों पत्ते खोले जाते हैं उनकी ताकत का अंदाज़ा लगाया जाता है और जिसके पत्ते अधिक ताकत रखते हैं। वह बाजी जीत जाता है। यदि तीनों पत्ते एक ही वजन के हो भले ही इक्के या तीन दुक्कियां हो, वे जीतने की ताकत रख सकते हैं, तीनों एक ही रंग के हों, तब भी वे महत्त्व रखते हैं। कबी-कभी इस खेल में सभी प्रतिबागी अपने तीन-तीन पत्तों में से केवल एक-एक पत्ता खोलते हैं सबके खुले पत्तों में जिसका पत्ता सबसे बड़ा होता है वह विजयी घोषित होता है। सबसे बड़ा पत्ता इक्का भी हो सकता है और कभी छोटी इकाई जैसे नहला भी।

अब बात समझ आने लगी थी कि जब कोई छोटा नेता अपने बड़े नेता से अलग होकर अपने साथियों के साथ विद्रोह पर उतर आता है, तब सबको उसके पत्ते खुलने की प्रतीक्षा होती है। एक बड़ी बात और भी समझ आई कि इक्का जैसी सबसे छोटी इकाई ही सबसे बड़ी इकाई यानी ‘आम आदमी’ होता है जो विजेता होने के अवसर सबसे अधिक पा सकता है…।

अब मुझे ज्ञात हो गया कि मैं नागरिक को अपने पत्ते खोल कर सही उत्तर दे सकता हूं।

About the author

Harish Naval

हरीश नवल दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित हिंदू कालेज के पूर्व प्रोफेसर हैं। वे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार हैं। मुख्यत: हिंदी व्यंग्य के पुरोधा हैं। उन्हें उनके ‘बागपत के खरबूजे’ के लिए युवा ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। हरीश नवल को पंडित गोविंद वल्लभ पुरस्कार और व्यंग्यश्री सम्मान सहित नौ अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। वे 50 देशों में हिंदी और हिंदी साहित्य का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। नवल के साहित्य पर नौ शोधार्थियों को उपाधियां मिल चुकी हैं। उनकी 30 मौलिक पुस्तकें और नौ संपादित पुस्तकें हैं।
डॉ. हरीश नवल एनडीटीवी के हिंदी कार्यक्रम के सलाहकार, आकाशवाणी दिल्ली के कार्यक्रम सलाहकार रह चुके हैं। इसके अलावा वे इंडिया टुडे के साहित्य सलाहकार भी रह चुके हैं। डॉ नवल भारतीय अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, विदेश मंत्रालय की विख्यात पत्रिका के संपादक रहे हैं। लेखन और पठन-पाठन के क्रम में वे बल्गारिया के सोफिया विश्वविद्यालय के विजिटिंग व्याख्याता और मारीशस विश्वविद्यालय के मुख्य परीक्षक भी रहे। वे अब तक 30 देशों की यात्रा कर चुके हैं। हिंदू कालेज से सेवानिवृत्ति के बाद डॉ. नवल की लेखन यात्रा का क्रम अनवरत जारी है।

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