अनीता पांडे II
यूंही कहीं गुम हो जाना
उसकी फितरत नहीं ,
एक दिन वह गुम हुई स्त्री मिलेगी
किसी उत्कृष्ट तैलचित्र के गूढ़ रंगों में,
वो मिलेगी राग वसन्त की ‘पकड़’ में,
वो नज़र आएगी
नवजात बच्चे की मुस्कान में,
सुनाई देगी वो मस्जिद की अज़ान में,
अठखेलियाँ करती वो
निर्मल पानी के बहाव में,
महसूस होगी वो हर कहीं
खुशबू-ए-गुलाब में,
लौटेगी ज़रूर वो वक्त के हिसाब में !
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