डॉ. एके अरुण II
कोरोना संक्रमण ने ‘वैश्विक स्वास्थ्य मिथक’ की पोल खोल कर रख दी है। पूरी दुनिया ने देख लिया कि कहीं भी मुकम्मल सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं हैं। इस वैश्विक महामारी ने बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों और वैश्विक स्वास्थ्य व्यवस्था का दावा करने वाले चिकित्सा तंत्र के मुखौटे को भी उतार कर नंगा कर दिया है। विभिन्न देशों के राजनीतिक दलों की सोच और समझ को भी इस महामारी ने जगजाहिर कर दिया। दुनिया ने देख लिया कि मौजूदा राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था उस गिद्ध की तरह है जो किसी के मरने का इंतजार भर करता है ताकि उसे अपना ग्रास बना सके।
ऐसे में अब दुनिया भर में इंसानों और इंसानियत की फिक्र करने वालों को लगने लगा है कि उनकी तरफ से एक ऐसा घोषणापत्र तैयार हो जो वैश्विक महामारी के दौर में पीड़ित मानवता की रक्षा के लिए एक उचित वातावरण बना सके ताकि भविष्य में यदि लोग जिंदा बच पाए तो कम से कम ढंग से जी तो सकें। आप इसे ‘जीवन के लिए जन घोषणापत्र’ भी कह सकते हैं।
कोविड-19 जैसे विश्वव्यापी स्वास्थ्य संकट ने पूरी दुनिया में ‘विकास’ के भम्र को जाहिर कर दिया है। लोग समझ चुके हैं कि तकनीक और भौतिक संसाधनों की प्रचुरता मात्र ही विकास नहीं कहलाते। मानव जीवन, जीव-जंतु और प्रकृति को सुरक्षित किए बगैर सारे कर्म छलावा हैें। धोखा है। विकास का तर्क जीवन और पर्यावरण को बेहतर बनाने से जुड़ा है लेकिन कोरोना काल में दुनिया ने देख लिया कि चंद मुनाफाखोर कंपनियां जीवन रक्षा के नाम पर अपना उत्पाद बेचने के लिए डर पैदा करती हैं और फिर उस डर से बचाने का स्वांग करती हैं। साथ ही इसकी बड़ी कीमत की वसूलती हैं।
कथित विकास के इस भ्रम से निकल कर अब दुनिया भर में अमन और जीवन पसंद लोगों में यह चिंतन जारी है। इसी चिंतन से निकला यह सवाल अब तूल पकड़ रहा है कि जीवन का सौदा करने वाले व्यापार को आम लोग खारिज करें और एक बेहतर मानवीय समाज रचना के लिये प्रयास करें। इसके लिए निम्नलिखित कुछ बिंदु में यह सुझाव के तौर पर प्रस्तुत कर रहा हूं।
जीवन रक्षा के लिए जन घोषणापत्र: अब दुनिया भर में इंसानों और इंसानियत की फिक्र करने वालों को लगने लगा है कि उनकी तरफ से एक ऐसा घोषणापत्र तैयार हो जो वैश्विक महामारी के दौर में पीड़ित मानवता की रक्षा के लिए एक उचित वातावरण बना सके ताकि भविष्य में यदि लोग जिंदा बच पाएं तो कम से कम ढंग से जी तो सकें। आप इसे ‘जीवन के लिए जन घोषणापत्र’ भी कह सकते हैं।
फोटो : साभार गूगल
1. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को वास्तविक रूप से वैश्विक स्वास्थ्य संगठन के रूप में दुनियाभर की सरकारें स्वीकार करे और इसके लिए सर्वमान्य मानवीय जीवन रक्षा के दिशा निर्देश सार्वजनिक किए जाएं।
2. मानव, जीवन एवं प्रकृति की रक्षा को दुनिया भर की सरकारें और सार्वजनिक संस्थाएं सर्वोपरि जिम्मेदरी के रूप में स्वीकार करे।
3. स्वास्थ्य रक्षा एवं उपचार को सेवा का दर्जा दिया जाए तथा इसके मुनाफे को गैर संवैधानिक आपराधिक घोषित किया जाए। यह घोषणा की जाए कि स्वास्थ्य रक्षा एवं उपचार का व्यवसाय नहीं किया जा सकता और इसे जनधन व हर जीव-जंतु को उपलब्ध कराना सबकी जिम्मेदारी है।
4. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के कार्य में लगे सभी लोगों को यह बताया जाए कि चिकित्सा सेवा है व्यापार नहीं। इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन एक दिशा निर्देश जारी करे और दुनिया के चिकित्सक उसे स्वीकार करें।
5. दुनिया में कहीं भी कभी भी किसी व्यक्ति की चिकित्सा के अभाव में हुई मृत्यु को सांस्थानिक हत्या माना जाए और उसकी जवाबदेही तय की जाए।
6. मानव जीवन, जीव-जंतु व वनस्पति की रक्षा के लिए दुनिया में उपलब्ध सभी संसाधन, ज्ञान व प्रणाली को समान मान कर उसका उपयोग किया जाए। चिकित्सा या उपचार की सभी वैज्ञानिक प्रणाली को समान अवसर देकर यह सुनिश्चित किया जाए कि अभाव व नकारात्मकता की वजह से किसी का जीवन समाप्त न हो पाए।
मानव जीवन और पर्यावरण के ऊपर व्याप्त संकटों ने पूरी दुनिया को दहशत और निराशा में डाल दिया है। जीवन के प्रति अनिश्चितता और आशंका की वजह से लोगों में डर, हिंसा और निराशा का भाव भर गया है। मानवीय विकास की गति थम सी गई है और आम लोग समझ नहीं पा रहे कि वे करें तो क्या करें। जीवन की आशंकाओं का लाभ उठा कर चंद पूंजीपति घराने ‘आपदा में अवसर’ का लाभ लूट रहे हैं। ऐसे में ‘चिकित्सा सेवा या व्यापार’ यह सवाल दुनिया भर के मानव प्रेमी समुद्रों को उद्वेलित कर रहा है और ‘प्रोग्रेसिव इन्टरनेशनल’ के बैनर तले दुनिया भर में इस पर चर्चा भी शुरू हो गई है।
दूसरी ओर महामारी से बचाव के लिए कथित टीके और दवाओं की उपलब्धता के बावजूद इसके वितरण में कई विसंगतियां पैदा की गई हैं। यही वजह है कि हर तरफ अराजकता का माहौल था। दुनिया भर में सबके स्वास्थ्य की रक्षा का सपना दिखाने वाला डब्ल्यूएचओ अमेरिका, यूरोप तथा चंद पूंजीवादी ताकतों के सामने बौना दिखता था। कथित साम्यवादी देश जो अब पूंजीवादी व्यवस्था की प्रतिकृति के रूप में सक्रिय है, इस खेल का बड़ा खिलाड़ी बन का उभरा है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि दुनिया भर के मानवीय व अमन पसंद लोग यह मांग करें कि ‘जीवन का जन घोषणापत्र’ दुनियां की सरकारें व संस्थाएं स्वीकार करें तथा तदनुरूप आचरण कर यह सुनिश्चित करें कि मानवजीवन सर्वोपरि है और हर हाल में हर कीमत पर इसकी रक्षा की जाएगी।
* लेखक जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं। यह उनके निजी विचार हैं।
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