विजया सिंह II
तीन दिन बाद आप घर लौटते हैं तो पाते हैं
इधर ब्रह्माण्ड की गतिविधियाँ विशेष रूप से सक्रिय रहीं आपके पीछे
छिपकली ने एक तितली के पर कुतर दिए हैं
और शेष शरीर छोड़ दिया है चींटियों के लिए
पता चला किस छद्म युद्ध से छिपकलियाँ आकाश तत्व को पाती हैं
और इस उम्मीद में हैं कि एक दिन उड़ जायेंगीं
हजम किये हुए परों के सहारे
चींटियाँ लाइन लगा कर तितली के अणु- अणु को दीवार के भीतर से
नीचे पाताल में पर्सिफ़ोनी के कोष में संग्रहित कर रही हैं।
यूँ वे निश्चित कर रही हैं उसकी वापसी बसंत में अपनी माँ के पास
यह उनकी जंग है डिमीटर के अवसाद से धरती को बचाने की
क्या मालूम था तितलियों के परों की इतनी अभियाचना है
धरती के ऊपर और उसके नीचे
वहां रसोई घर में
आम के हींग वाले अचार में फफूंद उग आई है
न हल्दी, न नमक, न आम का तीखा अम्ल ही परिरक्षक साबित हुए
अँधेरे के रसायन के विरुद्ध
अचार को भी दरकार है सूर्य नमस्कार की
उसकी भी याचना है सूर्य से मैत्री की
उसके १०८ नाम जानने की
उधर शयनकक्ष की खिड़की में एक गिलहरी ने घोंसला बना लिया है
टूटे कांच और लोहे की जाली के बीच
मेरा नीला रबर बैंड शायद उसके बच्चों के तकिये का काम करेगा
मेरी कुर्सी की कुतरी हुई सूत कम्बल का
मेरे पीछे मेरा घर
बेहिचक शिकमी देता है बेघर जन्तुओं को
भाड़े में मुझे चिन्ह मिलते हैं उसके चेतन होने के
और इस बात के कि वह कितना लापरवाह है
मेरे मालकिन होने के दावों के प्रति
बहुत ही सुन्दर कविता !