आलेख कथा आयाम

स्त्री का उपभोग्य वस्तु होना..

पेंटिंग : अनुप्रिया

 डॉ. सांत्वना श्रीकांत II

इस बात की शुरूआत औरतें ही करती हैं। चूंकि समाज के साथ सामान्य सोच यही है कि स्त्री की देह आकर्षित करती है। मगर अब स्वतंत्रता के नाम पर देह प्रदर्शन सहज हो चला है। ‘मेरा शरीर है मैं चाहे जो करूं’ बिल्कुल सही बात है, पर आप शरीर प्रदर्शन को ही महत्ता क्यों देती हैं? स्वतंत्रता और नारीवाद के नाम पर मन हमेशा यह प्रश्न झकझोरता रहता है। स्वतंत्रता और फेमिनिज्म को ढाल बना कर आप ही किसी और से संबंध बनाने के लिए सामने वाले के पार्टनर के साथ बेइज्जती करती हैं। फिर स्वतंत्रता और नारीवाद के नाम पर समाज जागरण का ढोंग क्यों? यह कहां का न्याय है? आप देह प्रदर्शन कर अपनी उद्देश्य पूर्ति करने का यह तरीका क्यों अपनाती हैं?

यह तो रही औरतों की बात। एक दूसरा मुद्दा है ‘यौनाचार के खुलापन’ पर जोर देना। क्यों भाइयों-बहनों आपके मन-मस्तिष्क पर यौन विकृतियां इतनी हावी हो चुकी हैं कि आपको बंद कमरे में किसी एक साथी का साथ गवारा नहीं हो रहा। क्यों? अगर आप अपने यौन जीवन से खुश नही हैं तो आपकी मानसिकता विक्षिप्त हो चुकी है। कम से कम सबको इस ढर्रे पर मत खड़ा कीजिए। न ही इसकी वकालत कीजिए। आपका कहना है कि यौनाचार के खुलेपन से बलात्कार के मुद्दे खत्म हो जाएंगे। जब गंदगी मन के अंदर भरी है तो आप अपने लिए बलात्कार को और सुविधाजनक करने की पैरवी ही कर रहे हैं। मानसिक बलात्कार तो रोज ही होता है किसी ना किसी रूप से हर महिला का,यह कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी।

एक और बड़ा मुद्दा है,वह है महिलाओं से यौनाचार पर बातें करना। किसी महिला ने अगर गलती से भी हंस कर बात कर ली, तो उस पर बिल्कुल  झप्पट्टा ही मार दीजिए। पैंतरे बदलिए कि किस तरह से कोमल भावनाओं के सहारे अपनी यौन कुंठाएं शांत की जाएं। हर बात पर स्वसंरक्षण करिए। कहते रहिए मेरा मतलब वह नहीं है,परन्तु दिमाग में पूरी तरह प्लान बना कर रखिए कि कब वह मिल जाए और आपका वहशीपन, प्रेम का आवरण ओढ़े अपनी विकृत इच्छाओं को आकार दे डाले। क्यों है ऐसा कि आप स्त्री को सिर्फ देह के रूप में देखते हैं और उससे अपनी यौन भूख मिटाना चाहते हैं।  क्या आप में से कोई सोचता है कि इतने सारे अपराध, घर का टूटना और बलात्कार, यह सब क्या इसी प्रवृत्ति से शुरू नहीं हो रहा।

इस पर सोचिएगा…यह सदियों से चला आ रहा है, लेकिन हम अपनी सोच बदल कर इस पर रोक लगा सकते हैं। आने वाली पीढ़ी तक इस कुंठित एवं विकृत सोच का स्थानांतरण कम से कम  करना है। क्या इस बात का संकल्प ले सकते हैं?

About the author

santwana

सशक्त नारी चेतना के स्वर अपनी कविताओं में मुखरित करने वाली डाॅ सांत्वना श्रीकांत का जन्म जून1990 में म.प्र. में हुआ है।सांत्वना श्रीकांत पेशे से एक दंत चिकित्सक हैं। इनका प्रथम काव्य-संग्रह 'स्त्री का पुरुषार्थ' नारी सामर्थ्य का क्रान्तिघोष है।

इनकी कविताएँ प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं- गगनांचल, दैनिक भास्कर,जनसत्ता आदि में प्रकाशित होती रहती हैं।

साथ ही वे ashrutpurva.com जो कि साहित्य एवं जीवनकौशल से जुड़े विषयों को एक रचनात्मक मंच प्रदान करता है, की संस्थापिका एवं संचालिका हैं।

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