कविता काव्य कौमुदी

शमशेर बहादुर सिंह की कविता चुका भी हूं मैं नहीं

शमशेर बहादुर सिंह II

चुका भी हूं मैं नहीं
कहां किया मैंने प्रेम
अभी।

जब करूंगा प्रेम
पिघल उठेंगे
युगों के भूधर
उफन उठेंगे
सात सागर।

किंतु मैं हूं मौन आज
कहां सजे मैंने साज
अभी।
सरल से भी गूढ़, गूढ़तर
तत्त्व निकलेंगे
अमित विषमय
जब मथेगा प्रेम सागर
हृदय।

निकटतम सबकी
अपार शौर्यों की
तुम तब बनोगी
एक गहन मायामय
प्राप्त सुख
तुम बनोगी तब
प्राप्य जय!

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Ashrut Purva

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