अश्रुत पूर्वा II
नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गोरखपुर में कहा कि गीता प्रेस सिर्फ एक प्रेस नहीं है, साहित्य का मंदिर है। वे यहां गीता प्रेस के शताब्दी वर्ष के उद्घाटन समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा, मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति की एक अवधारणा रही है कि यह एक प्रेस होगा, लेकिन आज देखा कि गीता प्रेस सिर्फ प्रेस नहीं है, साहित्य का मंदिर है। राष्ट्रपति कोविंद ने कहा, सनातन धर्म को बचाए रखने में हमारे मंदिरों, तीर्थ स्थलों का जितना योगदान है, उतना ही योगदान गीता प्रेस से प्रकाशित साहित्य का है।
गीता प्रेस पौराणिक कहानियां और धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित करने वाली सबसे बड़ी संस्था है। गोरखपुर शहर में गीता प्रेस गीता प्रेस की स्थापना 1923 में गीता मर्मज्ञ जयदयाल गोयन्दका ने की थी। गीता प्रेस के शताब्दी वर्ष समारोह में राष्ट्रपति ने कहा, मेरा सौभाग्य है कि वे इस समारोह में शामिल हो रहे हैं। उन्होंने कहा, यहां आने से पहले उन्हें गीता प्रेस के कर्मचारियों से मिलने का मौका मिला। इस प्रेस के लिए जो उनकी जो निष्ठा और ईमानदारी देखी वह अद्वितीय थी।
- गीता प्रेस पौराणिक कहानियां और धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित करने वाली सबसे बड़ी संस्था है। गोरखपुर शहर में गीता प्रेस गीता प्रेस की स्थापना 1923 में गीता मर्मज्ञ जयदयाल गोयन्दका ने की थी।
राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि इस संसार में जो बड़े कार्य होते हैं, उसके पीछे दैवीय शक्तियां होती हैं और गीता प्रेस को आगे ले जाने में हनुमान प्रसाद पोद्दार की अहम भूमिका है। उन्होंने गीता प्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयन्दका को याद करते हुए बताया कि हनुमान प्रसाद पोद्दार ने जयदयाल जी से प्रेस स्थापित करने का प्रस्ताव रखा था।
उन्होंने कहा, धर्म और शासन दोनों एक-दूसरे के साथ चलते हैं, दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं और आज वह दृश्य यहां देखने को मिल रहा है। गीता प्रेस का इतिहास बताते हुए राष्ट्रपति ने उसकी सराहना की और कहा कि इसने हिंदू धार्मिक प्रसंगों को जनमानस तक पहुंचाया है।
इस मौके पर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने अपने संबोधन में शताब्दी समारोह पर शुभकामना दी और कहा कि मानव जीवन में धर्म, कर्म और ज्ञान का महत्व है। उन्होंने कहा कि भारत में घर-घर गीता और रामचरितमानस पहुंचाने का श्रेय गीता प्रेस को जाता है।
(यह प्रस्तुति मीडिया की खबरों पर आधारित)