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बहस नए विचारों और सोचने के नए तरीकों को जन्म देते हैं : गुलजार

अश्रुत पूर्वा II

नई दिल्ली। गीतकार और पटकथा लेखक गुलजार का कहना है कि जब वे फिल्मों के लिए लिखते हैं तो उनकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। क्योंकि तब आप खुद के लिए नहीं, दूसरों के लिए लिख रहे होते हैं। यह मेहनत का काम है। वे शिमला में अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक उत्सव ‘उन्मेष’ में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मैं गीतों में भी शायरी करता हूं।…जब शायरी करता हूं तो अलग अंदाज होता है। उन्होंने कहा कि गानों और फिल्मों के बीच जुगलबंदी जरूरी है।

गुलजार ने कहा कि वार्तालाप और बहस नए विचारों और सोचने के नए तरीकों को जन्म देते हैं। वार्तालाप मानव इतिहास का हिस्सा है। कोई भी मनुष्य बिना वार्तालाप के नहीं रह सकता। इसके भी कई रूप हैं, जैसे खुद से वार्तालाप, अन्य मनुष्यों से वार्तालाप, प्रकृति से वार्तालाप आदि। उन्होंने कहा कि कई बार हमें पटकथा के हिसाब से गाने लिखने पड़ते हैं।

पटकथा के हिसाब से लिखते हैं गाने:

वार्तालाप मानव इतिहास का हिस्सा है। कोई भी मनुष्य बिना वार्तालाप के नहीं रह सकता। इसके भी कई रूप  हैं, जैसे स्वयं से वार्तालाप, अन्य मनुष्यों से वार्तालाप, प्रकृति से वार्तालाप आदि। उन्होंने कहा कि कई बार हमें पटकथा के हिसाब से गाने लिखने पड़ते हैं।

साहित्यिक उत्सव ‘उन्मेष’  में पटकथा लेखक ने कहा कि आम आदमी में बड़ी ताकत होती है। उनसे ही उन्हें आइडिया मिलते हैं। गुलजार ने इस मौके पर बताया कि  फिल्मों के लिए गाने वे कैसे लिखते हैं। उन गानों की एक यात्रा भी बताई। गुलजार ने हैदर, माचिस, ओंकारा आदि फिल्मों का जिक्र किया। इन गानों को संगीतकार विशाल भारद्वाज ने कंपोज किया था। विशाल ने पानी-पानी रे… दिल तो बच्चा है जी…बीडी जलइले…जैसे गानों से खूब तालियां बटोरी। इस समारोह में गिटार वादक मयूख सरकार ने कई सुखद प्रस्तुति दी।

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