आलेख कथा आयाम

बस्तर की अनोखी तुपकीमार रथयात्रा

फ़ोटो सौजन्य : unexplored bastar

पीयूष कुमार II

छत्तीसगढ़ का बस्तर अपनी प्राकृतिक और सांस्कृतिक समृद्धि के लिए प्रसिद्ध है। इस आदिवासी क्षेत्र के केंद्र जगदलपुर में दो विशेष परम्पराएं पिछली सात शताब्दियों से अनवरत चली आ रही हैं। एक है यहां का 75 दिवसीय दशहरा और दूसरी है 27 दिन चलनेवाला ‘गोंचा’ तिहार। पुरी (ओडिसा) के गुंडीचा अर्थात भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलराम की वार्षिक रथयात्रा को ही बस्तर में गोंचा कहते हैं। जगदलपुर की यह रथयात्रा जगन्नाथपुरी के बाद अनवरत चलनेवली, भव्य और प्राचीन रथयात्रा है।

इतिहास के पन्नों पर नजर डालने से ज्ञात होता है कि बस्तर के तीसरे महाराजा पुरुषोत्तम देव कृष्ण के अनन्य भक्त थे। गौरतलब है कि बस्तर राज्य की स्थापना वारंगल के काकतीय वंश के सदस्य राजा अन्नमदेव ने 1324 में की थी। इन्हीं के चौथे वंशज राजा पुरुषोत्तम देव ने वर्ष 1408 में जगन्नाथपुरी की यात्रा की थी। वहां उन्हें रथपति की उपाधि के साथ 16 पहियों वाले रथ के साथ जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की काष्ठ मूर्तियां भी प्रदान की गई थी। इस 16 पहियों वाले रथ को सुविधा के लिए तीन भागों में बांट दिया गया था। एक रथ आठ पहियों का और दो रथ चार चार पहियों के बनाये गए। इनमें चार पहिया वाला पहला रथ गोंचा के अवसर पर खींचा जाता है। बाकी पहियों के रथ दशहरे के अवसर पर खींचे जाते हैं।

बस्तर के इस गोंचा तिहार में विभिन्न रस्मों के निष्पादन के लिए 360 आरण्यक ब्राह्मणों  तत्कालीन महाराजा पुरुषोत्तम देव ने नियुक्त किया था जो ओडिशा से लाये गए थे। इस ऐतिहासिक गोंचा में जगदलपुर का सिरहासार भवन सबसे महत्वपूर्ण स्थल है। यहां हर साल बेड़ा उमरगांव के कारीगरों के द्वारा लकड़ी का 26 फीट ऊंचा रथ तैयार किया जाता है। यह रथ लगभग 15 दिनों में तैयार करके उसकी साज-सज्जा की जाती है। गोंचा का यह रथ पारंपरिक रूप से साल की लकड़ी का बना होता है। इस रथ में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की लकड़ी से बनी प्रतिमा को विराजित कर शहर भ्रमण करवाया जाता है। यह पर्व प्रति वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को आरम्भ होता है।

गोंचा में तुपकी चालन , तस्वीर : साभार छत्तीसगढ़ टूरिस्म

जगदलपुर का यह गोंचा 614 वर्ष का हो रहा है। यह पिछली छह शताब्दियों से इसी तरह अनवरत चल रहा है। इस साल पर्व की शुरूआत 14 जून से चंदन जात्रा विधान के साथ हो चुकी है। इसके बाद  30 जून को नेत्रोत्सव व महालक्ष्मी मूर्ति स्थापना होगी और एक जुलाई को नेत्रोत्सव विधान के तहत भगवान के नैनों का श्रृंगार किया जाएगा और सम्मानपूर्वक रथारूढ़ करवाकर रथयात्रा निकाली जाएगी। इसका समापन बाहुड़ा गोंचा रथयात्रा के साथ होगा। भगवान वापस अपने धाम पहुंचेंगे। सिरहासार भवन में भगवान जगन्नाथ आठ दिनों तक विश्राम करते हैं। इस दौरान यहां विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान संपन्न होते हैं। यहीं पर प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष सप्तमी के दिन भगवान को छप्पन भोग अर्पित किया जाता है। बताया गया कि पुरी की तर्ज पर भगवान को ‘पूरी पीठा’ नामक मिष्ठान का भोग चढ़ता है। साथ ही खीर, चावल, गजामूंग और पका हुआ फनस अर्थात कटहल का भोग अर्पित किया जाता है।

बस्तर के गोंचा का सबसे बड़ा आकर्षण है, तुपकी। तुपकी तोप का अभ्रंश है। तुपकी से भगवान को सलामी दी जाती है। तुपकी बांस से बनी होती है। यह पिचकारी की तरह एक खोल होता है जिसके पिछले हिस्से में पेंगू के फल को रखकर बांस की डंडी से ठेल दिया जाता है। इससे पेंगू का फल जहां निशाना लगाकर मारा जाता है, वहां लगता है। यह शरीर मे जब लगता है तो वह दर्द तकलीफ नहीं देता बल्कि अच्छा लगता है। यह उल्लास से भरी परम्परा है। गोंचा के लिए खासतौर से बननेवाली यह तुपकियाँ कलात्मक और आकर्षक बनाई जाती हैं।  तुपकी चालन की परंपरा जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की सलामी का स्थानीय तरीका था जो कालान्तर में सलामी के साथ साथ रास की तरह आनंद का, हंसी मजाक का रूप भी ले लिया। कभी गोंचा के दिन जगदलपुर शहर में हों तो तुपकी की पिट… पिट की आवाज दिनभर सुनने को मिलती है। बस्तर का गोंचा और तुपकी इस लिहाज से एक दूसरे के पर्याय हो चुके हैं। यहां बच्चों को तुपकी के कारण ही गोंचा पर्व का इंतजार रहता है। पूरे भारत में तुपकी चलाने की यह परंपरा सिर्फ बस्तर के इस गोंचा पर्व में है।

पेंगू (मलकांगिनी) का फल

तुपकी में लगनेवाला पेंगू का यह फल मलकांगिनी नाम का एक औषधीय पौधा है जिसका वानस्पतिक नाम सिलीस्ट्रस पैनिकुलेटा (Celastrus paniculatus) है। पीले फलवाला यह  झाड़ीनुमा पेड़ भारत भर में मिलता है। इसके बीज भूरे होते हैं। यह वात, गठिया, और कई प्रकार के बुखार के इलाज में कारगर औषधि है। आयुर्वेद के अनुसार यह अधकपारी और लकवा में भी उपयोगी है। बस्तर में गोंचा के दिन आसपास के गांव वाले बांस की तुपकियों के साथ  मलकांगिनी अर्थात पेंगू का फल लेकर आते हैं और तुपकी चलाने के लिए इसकी बिक्री करते हैं।

हमारे देश की सबसे बड़ी विशेषता इसकी उत्सवप्रियता है। सभी त्योहारों का मूल प्रकृति और कृषि है। त्योहारो और पर्वों से प्रेम और सामूहिकता का विकास होता है। गोंचा पर कामना है कि अच्छी वर्षा हो, कृषि के साथ हर तरह की समृद्धि का विकास हो।

About the author

पीयूष कुमार

पीयूष कुमार

पता - वार्ड नम्बर 04, शांतिनगर स्ट्रीट, बागबाहरा

जिला - महासमुंद (छत्तीसगढ़) 493449
लेखन - सह संपादक 'सर्वनाम'। आलेख, समीक्षा, अनुवाद, कविता, सिनेमा आदि विधाओं में लेखन। हंस, संप्रेषण, अक्षर पर्व, सर्वनाम, छत्तीसगढ़ मित्र, शैक्षिक दखल आदि पत्रिकाओं, विभिन्न समाचार पत्रों, और ऑनलाइन पोर्टल, न्यूजसाइट पर प्रकाशन।
प्रकाशन - 'सेमरसोत में साँझ' नाम से कविता पुस्तक भारतीय ज्ञानपीठ से सद्यप्रकाशित।
अन्य - लोकसंस्कृति अध्येता। शौकिया फोटोग्राफी, पुस्तकों के कव्हर हेतु छायांकन।
संप्रति - छत्तीसगढ़ उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत डिग्री कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर
मोबाइल - 8839072306
ई मेल - piyush3874@gmail.com

error: Content is protected !!