कविता काव्य कौमुदी

1. श्रावण की शुष्कता (सॉनेट )

विनीत मोहन ‘औदिच्य’ II

नैराश्य की हाला अंतस में जब प्राणों तक भर जाती है
श्रावण की शुष्कता उदासीन चंचल मन को भरमाती है
जिससे चाहा सुख अंजुरि भर उसने क्यों कर यूँ ठुकराया
घनघोर उपेक्षा से आहत पागल मनवा ये भरपाया।

है उथल-पुथल इस जीवन में है ग्रस्त व्याधियों से ये तन
और व्यथा की सरिता में डूबा रहता है मेरा भावुक मन
भोगी मैंने पीड़ा अनंत पर मौन सदा को साध लिया
कड़वाहट को नित पी पी कर जीवन कैसा भरपूर जिया?

हँस हँस कर जीना सीख लिया अब तो मुझको विश्रांति मिले
क्या समय कभी वो आयेगा जब आशा का कोई पुष्प खिले?
कब होगा पुण्य उदय मेरा, सोया सा भाग्य मुस्कायेगा ?
कोई मेरा प्रियतम बन कर , आ मुझको गले लगायेगा ?

हो घना तमस जब चहुँ दिस में तब लगे शून्यता ही प्रियकर
किस किस का मैं प्रतिकार करूँ अब तुम्ही बता दो हे प्रियवर!

2. शून्यता (सॉनेट )

जब घेर लेती है मुझे चहुँ ओर से अत्यंत प्रिय शून्यता
तो स्वतः ही उत्पन्न होती भौतिक विचारों की न्यूनता
बढ़ जाता अनायास ही हृदय की धड़कन का स्पंदन
साथ ही रुक जाता सांसारिक वासनाओं का क्रंदन।

दुख, पीड़ा, मानसिक विकारों का होता जब ह्रास
मायावी दुश्चिंतायें रहती दूर, न दे पाती कभी त्रास
रक्त का शिराओं में सहसा बहाव होता अवरुद्ध
होते शमित अंतर्द्वंद, तनाव व मानव विरुद्ध युद्ध।

अंतर्मन में उद्भासित होता विस्मयकारी प्रकाश
उच्च विचारों की संभावनाओं का खुलता आकाश।
निस्वार्थ भाव से प्राणी जब भी करता उद्योग
आत्मा का परमात्मा से मिलन का बनता संयोग।

शून्यता की दिव्यता में शनैः-शनैः उभरता प्रभुत्व
जीवन को दे जाता सार्थकता यही अनमोल तत्व।।

About the author

विनीतमोहन औदिच्य

श्री विनीत मोहन औदिच्य - १० फरवरी, १९६१ को उत्तरप्रदेश के करहल में जन्मे आप , संप्रति उच्च शिक्षा विभाग मध्यप्रदेश शासन के अंतर्गत शासकीय महाविद्यालय में अंग्रेजी के प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। एक सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार और सिद्धहस्त हिन्दी कवि के रूप में उनकी प्रतिभवान लेखनी हिंदी की विभिन्न साहित्यिक विधाओं में मानव जीवन के हर एक पहलू को स्पर्श करती है। उनके प्रकाशित 5 एकल संग्रहों व 9 साझा संग्रहों में 'खुशबु ए सुख़न', 'काव्य प्रवाह', 'कारवां ए ग़ज़ल', 'भाव स्रोतस्विनी' एवं 'अंदाज़ ए सुख़न' सम्मलित हैं। अंग्रेजी के सोनेट कवियों को हिंदी में अनूदित करने की उनकी अभिरुचि को 'प्रतीची से प्राची पर्यंत' में एवं नोबेल सम्मान विजेता पाब्लो नेरुदा के हंड्रेड लव सोनेट्स का हिंदी अनुवाद 'ओ, प्रिया! में पूर्णता प्राप्त हुई है।

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