संजय स्वतंत्र II
हे गणपति
अगर कुछ देना तो
इतनी शक्ति देना
जिससे दूर कर सकेंं हम
दूसरों के जीवन की
सभी बाधाएं।
हे गणपति,
अगर कुछ देना तो
मन की निर्मलता
हमें दे देना मुट्ठी भर
जिससे मिटा सकें
अपना राग-द्वेष,
संसार से कलुषता
और छल-कपट।
हे गणपति,
अगर कुछ देना तो
एक दिव्य मुस्कान देना
जिससे ला सकें हम
इस धरती के हर मनुष्य
के लिए मुस्कान नित्य।
हे गणपति
झोली भर देना इतनी
मोहब्बत की जिससे
दूसरों के दिल में भर सकें
समंदर जितना प्यार,
भर देना झोली में
इतनी खुशियां भी
कि दूसरों की खाली झोली में
भर सकें खुशियों के सिक्के।
हे गणपति,
नश्वरता का बोध
कराते रहना हमेशा
जब हम मिट्टी में मिल जाएं
तो फिर लौट कर आएं,
अन्न बन कर उपजें तो
प्रसाद के लिए मोदक बन जाएं
या फूल बन कर खिलें
और आपके चरणों में
फिर से जगह पा जाएं।