कविता काव्य कौमुदी

दिल में गणेश और छोटी सी आशा…

संजय स्वतंत्र II

हे गणपति
अगर कुछ देना तो
इतनी शक्ति देना
जिससे दूर कर सकेंं हम
दूसरों के जीवन की
सभी बाधाएं।

हे गणपति,
अगर कुछ देना तो
मन की निर्मलता
हमें दे देना मुट्ठी भर
जिससे मिटा सकें
अपना राग-द्वेष,
संसार से कलुषता
और छल-कपट।

हे गणपति,
अगर कुछ देना तो
एक दिव्य मुस्कान देना
जिससे ला सकें हम
इस धरती के हर मनुष्य
के लिए मुस्कान नित्य।

हे गणपति
झोली भर देना इतनी
मोहब्बत की जिससे
दूसरों के दिल में भर सकें  
समंदर जितना प्यार,
भर देना झोली में
इतनी खुशियां भी
कि दूसरों की खाली झोली में
भर सकें खुशियों के सिक्के।

हे गणपति,
नश्वरता का बोध
कराते रहना हमेशा
जब हम मिट्टी में मिल जाएं
तो फिर लौट कर आएं,
अन्न बन कर उपजें तो
प्रसाद के लिए मोदक बन जाएं
या फूल बन कर खिलें  
और आपके चरणों में
फिर से जगह पा जाएं।

About the author

संजय स्वतंत्र

बिहार के बाढ़ जिले में जन्मे और बालपन से दिल्ली में पले-बढ़े संजय स्वतंत्र ने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से पढ़ाई की है। स्नातकोत्तर की शिक्षा पूरी करने के बाद एमफिल को अधबीच में छोड़ वे इंडियन एक्सप्रेस समूह में शामिल हुए। समूह के प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक जनसत्ता में प्रशिक्षु के तौर पर नौकरी शुरू की। करीब तीन दशक से हिंदी पत्रकारिता करते हुए हुए उन्होंने मीडिया को बाजार बनते और देश तथा दिल्ली की राजनीति एवं समाज को बदलते हुए देखा है। खबरों से सरोकार रखने वाले संजय अपने लेखन में सामाजिक संवेदना को बचाने और स्त्री चेतना को स्वर देने के लिए जाने जाते हैं। उनकी चर्चित द लास्ट कोच शृंखला जिंदगी का कैनवास हैं। इसके माध्यम से वे न केवल आम आदमी की जिंदगी को टटोलते हैं बल्कि मानवीय संबंधों में आ रहे बदलावों को अपनी कहानियों में बखूबी प्रस्तुत करते हैं। संजय की रचनाएं देश के सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।

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