संस्कृति/धरोहर डेस्क II
नई दिल्ली। भोपाली बटुआ देखते ही मन मोह लेता है। हम इसे खरीद भी लेते हैं। यह कला की ऐसी धरोहर है जो अब रोजगार का साधन भी बन रहा है। इसका निर्माण कर कर युवा आजीविका भी कमा रहे हैं। यों इसकी काफी मांग भी है।
पारंपरिक कला और शिल्प की विरासत को संरक्षित करने के उद्देश्य से भोपाल में राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान (निफ्ट) के तत्वावधान में शिल्पकारों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए कार्यशाला लगाई गई। भोपाली बटुआ पर आधारित चौथी और अंतिम कार्यशाला का समापन दस सितंबर को हुआ।
भोपाली बटुआ अपने अनूठी डिजाइन के लिए मशहूर है। इसमें मखमली कपड़े पर कुशलता से मोतियों की माला की सिलाई की जाती है।
फोटो साभार गूगल
परियोजना के लिए निफ्ट, भोपाल के समन्वयक डॉ. राजदीप सिंह खनूजा ने बताया कि उस्ताद परियोजना अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा प्रचलित शिल्प के उत्थान के लिए बनाई गई है। इसके तहत 30 हस्तकलाओं के कौशल उन्नयन के लिए देशभर के 17 राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान (निफ्ट) में लगभग 30 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है। बता दें कि भोपाली बटुआ अपने अनूठी डिजाइन के लिए मशहूर है। इसमें मखमली कपड़े पर कुशलता से मोतियों की माला की सिलाई की जाती है।
खनूजा ने कहा कि निफ्ट, भोपाल द्वारा इस कार्यशाला के माध्यम से परियोजना से जुड़ी टीम ने न केवल भोपाली बटुआ की शिल्प कला और उससे जुड़े लोगों के उत्थान की कोशिश की है, बल्कि शिल्प की उत्पत्ति की जड़ों से प्रेरणा ली है। इसके बारे में कहा जाता है कि इसे 19 वीं सदी में कुदसिया बेगम के दरबार में पेश किया गया था। (समाचार इनपुट)