कथा आयाम लघुकथा

… बिनु होई न प्रीति

डाॅ चंद्रेश कुमार छतलानी II

वह रसोई से बाहर भागते हुए निकली और अपने पति से टकरा गई। पति ने हैरानी से पूछा, “क्या हुआ?”

पत्नी ने उत्तेजित स्वर में उत्तर दिया, “यह देखो! डस्टबीन से क्या मिला है?” कहते हुए उसने अपनी मुट्ठी खोली। उसमें सोने का एक सिक्का था।

पति ने उस सिक्के को देखते हुए शांत स्वर में कहा, “हाँ! यह तो मैंने ही फैंका है।”
“क्याss!? तुम पागल हो गए हो। इतना महँगा सोने का सिक्का…!!”

“हाँ! क्योंकि यह पुराना हो गया था।” पति का स्वर अभी भी शांत ही था।

“सोना नहीं, मैल और कालेपन के कारण चांदी पुरानी होती है। सोना फैंकना अपशगुन भी होता है।”, पत्नी ने तल्ख़ उपदेशात्मक स्वर में उत्तर दिया।

“अच्छा! लेकिन तुम भी तो सोने जैसे मेरे पापा को घर से निकाल फैंकने की बात करती हो।”
अब पत्नी झुंझला गई और बोली, “सोने के सिक्के और तुम्हारे पापा का कोई मेल भी है? वे तो पीतल से भी… उनकी कितनी सेवा करनी पड़ती है! औरss तुम्हारे दूसरे भाई… वे क्या करते हैं? वे क्यों नहीं लेकर जाते उन्हें?”

पति मज़बूत स्वर में बोला, “नहीं! मैं अपने सोने जैसे पापा को किसी को नहीं ले जाने दूंगा।”
पत्नी दाहिने होंठ के कोने को ऊपर चढ़ाते हुए बुदबुदाई, “तो दुनिया को दिखाने के लिए सेवा करते रहो।”

उसका हिकारत भरा बुदबुदाना सुन पति को गुस्सा आ गया और उसने अपनी पत्नी के दोनों बाजू पकड़ कर गुर्राते हुए धीमे लेकिन दृढ़ता से एक शब्द ऐसा कहा, जिसे सुनकर पत्नी निचले होंठ को ऊपर के दांतों से दबाती हुई सोने के सिक्के को मुट्ठी में बंदकर फिर से रसोई में चली गई।
और वह शब्द था –
पेंशन।

About the author

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

नाम: डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
शिक्षा: विद्या वाचस्पति (Ph.D.)
सम्प्रति: सहायक आचार्य (कम्प्यूटर विज्ञान)
साहित्यिक लेखन विधा: कविता, लघुकथा, बाल कथा, कहानी
11 पुस्तकें प्रकाशित, 8 संपादित पुस्तकें
32 शोध पत्र प्रकाशित
19 राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त

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