कविता काव्य कौमुदी

‘प्रेम-विमर्श’

सांत्वना श्रीकांत II

एक ने कहा- बहुत संवेदनशील हूँ मैं.. इकलौती थी अपने माँ बाबा की,

दूसरी ने कहा -सारी बहनों में सबसे छोटी थी..
ज़्यादा लाड़ मिला है मुझे,

तीसरी ने कहा-घर में स्नेह से अपूर्ण रही, रिक्तता है

चौथी ने कहा- खाली पेट सोना पड़ता है फिर भी ज्यादा ज़रूरी है प्रेम उसके लिए, और गला रुंध आया

और भी थीं
जिन्होंने अपने प्रेमी की प्रेमिकाओं का भी
सावधानी पूर्वक ध्यान रखा
हर ज़रूरत को बड़ी सूक्ष्मता से पूरा किया

यहाँ तक नगर वधू ने भी अपने प्रेमी को ही स्वयं का मन सौंपा..

कुछ ने पति से पिटने के बाद भी,
आख़िरी बार उसके स्पर्श को याद किया
और आँखों में वही जिजीविषा
छटपटाने लगी,

लंबी कतार थी

स्त्रियों ने यह समझने- समझाने की इच्छा से तर्क दिए कि उन्हें प्रेम से परिपूर्ण क्यू किया जाए?
वो चाहती हैं उन्हें चुना जाए सबसे ऊपर
समस्त प्रतिभाओं से परिपूर्ण
वे प्रेम के अपूर्णता का बोझ ढो नही पाती
उनके लिए प्रेम दो जून की रोटी से अधिक आवश्यक है।

(चित्र- अमृता शेरगिल की पेंटिंग गूग़ल से ली गयी)

About the author

santwana

सशक्त नारी चेतना के स्वर अपनी कविताओं में मुखरित करने वाली डाॅ सांत्वना श्रीकांत का जन्म जून1990 में म.प्र. में हुआ है।सांत्वना श्रीकांत पेशे से एक दंत चिकित्सक हैं। इनका प्रथम काव्य-संग्रह 'स्त्री का पुरुषार्थ' नारी सामर्थ्य का क्रान्तिघोष है।

इनकी कविताएँ प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं- गगनांचल, दैनिक भास्कर,जनसत्ता आदि में प्रकाशित होती रहती हैं।

साथ ही वे ashrutpurva.com जो कि साहित्य एवं जीवनकौशल से जुड़े विषयों को एक रचनात्मक मंच प्रदान करता है, की संस्थापिका एवं संचालिका हैं।

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