अश्रुत पूर्वा II
एक काव्य संग्रह आया है। इसका शीर्षक है- ‘किसी कवि की प्रेमिका हो जाना।’ आपको कौतुहल हो सकता है इस शीर्षक से। मगर कवयित्री इसको लेकर साफ हैं बिल्कुल बेबाक हैं। यह शीर्षक उन्होंने कुछ सोच कर ही तय किया होगा। यों कवि की रचनाओं से हम सभी मोहित होते हैं। कभी-कभी यह सम्मोहन के स्तर पर चला जाता है। लेकिन जब कोई स्त्री मोहित होती है किसी कवि से, तो इसका मतलब यह कतई नहीं कि वह उसके प्रेम में है। प्रतिमा मौर्या ‘प्रीत’ यही कहना चाहती हैं और साबित करना चाहती हैं।
प्रतिमा कहती हैं- मैं इतनी पगली कि कब किसके प्रेम में पड़ जाती हूं समझ ही नहीं पाती और चल देती हूं बेसुध होकर उसके पीछे-पीछे। ये भी ख्याल नहीं करती कि वह जीव है या निर्जीव, चल है या अचल। मेरी पुकार उस तक पहुंचेगी भी या प्रतिध्वनित होकर कविता के रूप में वापस लौटेगी। बचपन से सुनती-परखती आ रही थी उस पर लगते आरोपों-प्रत्यारोपों को। ध्यान मुद्रा में तल्लीन देख कभी-कभी उसको इस जहां का सबसे बेपरवाह शख्स कहा है। मुझे कहां पता था कि दुनिया जिस सिद्धार्थ को बुद्ध के रूप में बरतती है, मैं उस सिद्धार्थ को अपना प्रेमी कह बैठूंगी।
कवयित्री कहती हैं, औचक ही एक दिन मैं अपनी कविता के प्रेम में पड़ गई। और सारे तर्कों को दरकिनार करते हुए उसे इस संग्रह का शीर्षक चुन लिया। मेरे पागलपन में मेरे झूठे ईश्वर ने भी अनजाने में खूब साथ दिया। एक दिन एक तस्वीर को मेरे जेहन में उतार दिया और मुश्किल हो गया मेरे लिए उस तस्वीर के सम्मोहन से मुक्त होना। इस सम्मोहन से मुक्ति की कामना करने के बजाय मैंने उसमें प्रेम की मीठी सी गांठ लगा दी। ईश्वर की इस निष्ठुरता पर मैं मन ही मन मुस्कराई और बोल पड़ी-किसी कवि की प्रेमिका को चुनने के लिए धन्यवाद ईश्वर। अब मैं तेरे प्रेम में पड़ गई हूं पर तुम्हें झूठा कहना कभी नहीं छोड़ूंगी रे। ….
यह एक कवयित्री की स्वीकारोक्ति है। हम यहां चर्चा कर रहे हैं प्रतिमा मौर्य ‘प्रीत’ के सद्य प्रकाशित काव्य संग्रह ‘किसी कवि की प्रेमिका हो जाना की।’ ये कविताएं जनमती कैसे हैं। अकसर ये सवाल पूछा जाता है। इसका जवाब खुद कवयित्री ने यहां दिया है- ये जो निर्झर सा/दिख रहा आंखों में/अश्रु नहीं है/दबी हुई भावनाएं झरती हैं / कविता बन कर। … यानी भावनाओं का निर्झर बह जाना ही कविता है।
इस काव्य संग्रह में प्रतिमा की कविताएं अपने नायक से संवाद करती प्रतीत होती हैं। पढ़ते हुए मानों सांसें ठहर जाएं। सभी कविताएं ऐसी हैं कि बस पढ़ते चले जाएं। एक तो भाषा सरल, उस पर से गजब की रवानी।
बोधि प्रकाशन से छप कर आए इस काव्य संग्रह का आवरण से लेकर कथ्य तक सुंदर है। हथेलियां शीर्षक से रची गई कविता में ये पक्तियां दिल को छूती हैं- अनगिनत भाषाओं में से एक/एक मीठी भाषा स्पर्श की है/ जो दुनिया की तमाम/प्रेमिल हथेलियों के हिस्से आई। प्रेम के रंग में रंगी कई कविताएं बरबस मन मोह लेती हैं। जैसे-
अपने अच्छे दोस्त के लिए
बुन लेना उसकी पसंद का स्वेटर
चुन लेना उसकी टाई का रंग
भरी भीड़ में खिलखिलाते हुए
पूछ लेना उससे
सुंदर लग रहा है न मेरे बालों में गुलाब।
एक सौ बीस पेज के इस काव्य संग्रह में प्रतिमा की कविताएं अपने नायक से संवाद करती प्रतीत होती हैं। पढ़ते हुए मानों सांसें ठहर जाएं। और कवयित्री चलते जाना चाहती हैं कुछ इस तरह- किसी दिन चलना है/लंबे सफर में तुम्हारी ऊंगलियों में ऊंगलियां फंसाए/सूरज डूब रहा होगा/और चांद होगा उगने की तैयारी में/तब हम दोनों के मन सुस्ता रहे होंगे/किसी गौरैया के घोंसले में। इसी तरह वे नायक से कहती हैं-
प्रेम उपजा है तो
बस प्रेम करो
आने-जाने का करार नहीं।
यों प्रतिमा की सभी कविताएं ऐसी हैं कि बस पढ़ते चले जाएं। एक तो भाषा सरल, उस पर से गजब की रवानी। कविता में यह गुण जरूर होना चाहिए। अब चर्चा उस कविता की जिससे उपजा काव्य संग्रह का शीर्षक। प्रतिमा लिखती हैं-
हजारों सपने में से
एक सपना ये भी था
जाने-अनजाने
किसी कवि की प्रेमिका हो जाना
या फिर हो जाना
धरती के किसी कोने का जंगल
अफसोस
जीवन में इन दोनों विकल्पों पर
माइनस मार्किग हुई।