नई आमद पुस्तक

‘थके- से सहयात्री’ चोका संग्रह

अश्रुतपूर्वा II

चोका-संग्रह : थके-से सहयात्री
लेखक: डॉ भीकम सिंह
प्रकाशक : अयन प्रकाशन ,नई दिल्ली
मूल्य: 340
पृष्ठ: 120

‘थके-से सहयात्री’ भीकम सिंह जी का पहला ‘चोका-संग्रह’ है। ऐसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद से सेवा निवृत्त भीकम सिंह जी हाइकू, हाइगा,ताँका, चोका,कविता, व्यंग्यलेख, लघुकथा, यात्रा-संस्मरण आदि विधाओं में लेखन कर रहें हैं। 
प्रकृति प्रथम शिक्षिका और प्राकृतिक परिवेश सर्वप्रथम गुरुकुल होता है। यहीं सबसे पहले मनुष्य सीखता है कि- आग से खेलना उसको ही जल सकता है। वहीं यदि आग की सर्जनात्मक प्रकृति को पहचान उसका उपयोग मानव जाति के कल्याण में करते हैं तो प्रलयकारी अग्नि, चूल्हे की आग बनकर भोजन तैयार कर  क्षुधा शान्त करने का काम करती है। परन्तु अफसोस सब जानते हुए भी मनुष्य प्रकृति के साथ सामन्जस्य ना बिठाकर केवल उसको दोहने और सृष्टि का प्राकृतिक प्रलय में विलय करने पर तुला है। 
‘थके- से सहयात्री’ चोका संग्रह में इसी तथ्य की, नदी, पहाड़, पेड़, मेघ, सागर के जरिये काव्यिक अभिव्यक्ति हुई है। इन चौकों को पढ़ते हुए पाठक मन भविष्य की विनाशकारी  आशंकाओं से सिहर जाता है। मानव की हृदयविहीनता एवं नृशंसता से व्यथित नदी को देख कवि प्रश्न उठता है- ”फिर कौन है जो नदियों की सारी हँसी खा गया?”  ऐसे संवेदनहीन व्यवहार से उपेक्षित, जमीन में सुराख खोजती नदी सीता बन जाना चाहती है। भूलकर ‘सरकते पहाड़ों’ से आई तबाही फिर से ‘षड़यंत्रों की ढाई चालें’ चलते आदमी को ये चोके कदम-कदम पर चेताते चलते हैं। पर्यावरण के संरक्षण को नज़रअंदाज ना करने की चेतावनी देता एक बहुत ही आवश्य चोका संग्रह है। अवश्य ही यह संग्रह पाठकों को प्राकृतिक परिवेश के संरक्षण के प्रति जागरूक करेगा।

एक चोका इस संग्रह से-

“नदी
नावें थकीं सी
घाटों पर बँधी हुई
तेरे दुख से
दुखी हुई हैं नदी!
बढ़ता देखकर
सभी ने जैसे
अन्याय के विरूद्ध
हड़ताल की
तेरा पाट लौटेगा
केवट ने बात की।”

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