लेखक: राजगोपाल सिंह वर्मा, प्रकाशक: सेतु प्रकाशन, नोएडा, पृष्ठ: 272, मूल्य: रु 349.
द्वितीय विश्व युद्ध ने जब आर्थिक-सैन्य, राजनीतिक और सामाजिक रूप से ब्रिटिश साम्राज्य को पृष्ठभूमि में लाकर उसकी कमर तोड़ दी. इसी कारण देश में इनके विरुद्ध चल रहा असंतोष भी इतनी चरम सीमा पर जा पहुंचा कि इन यूरोपियन आक्रांताओं ने देश छोड़ कर जाने में ही भलाई समझी. फिर भी जाते-जाते उन्होंने देश और लोगों को न केवल दो हिस्सों में बल्कि इस सीमा तक बाँट दिया कि आज भी भिन्न-भिन्न समुदायों और धर्मों के लोग एक दूसरे को संशय और दुर्भावना से देखते हैं.
ऐसे समाज और संदर्भित काल खंड में कुमाऊँ के अल्मोड़ा जनपद में जन्मी, मूल रूप से परम्परागत ब्राह्मण परिवार से और कालांतर में अपने परिजनों के साथ ईसाई बनी आइरीन शीला पंत के पारिवारिक, शैक्षिक तथा सामाजिक-राजनैतिक सफर के साथ ही उनके गैर-धर्म में हुए एक सफल वैवाहिक सम्बन्धों की एक रोमाँचक कथा है यह वही आइरीन थी जो कभी ऑक्सफ़ोर्ड से शिक्षा प्राप्त कर लौटे करनाल के नवाबजादे और मुजफ्फरनगर के जागीरदार राजनीतिज्ञ लियाकत अली से लखनऊ के सत्ता के गलियारों में अनायास टकरा गई थी. इस छोटी-सी भेंट को नवाबजादे की ओर से प्रणय निवेदन में बदलने में कोई ख़ास देर नहीं लगी.
तमाम अनिश्चितताओं और आइरीन के परिवार की असहमति के बावजूद उनका विवाह हुआ. कैसे हुआ, यह विवरण तो नहीं पता, पर आइरीन विवाहोपरांत ‘गुल-ए-राना’ कहलाई. वह अपने पति की हमसफर होने के साथ ही उनकी निकटस्थ विश्वासपात्र सहयोगी बनी. उसने पति की राजनीति का उस मुकाम तक साथ दिया जहाँ वह एक नये राष्ट्र यानि पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री के पद तक जा पहुंचे. इस रोमाँस और रिश्तों की रोमाँचक कामयाबी की कहानी है आइरीन से राना बेगम बनी इस कुमाऊँनी बाला की.
सन १९५१ में उसके पति लियाकत अली खाँ की पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री पद पर रहते ही हत्या हो गई थी. जो व्यक्ति अपनी बेशुमार दौलत और रुतबा भारत में ही छोड़ गया हो, उसके साथ ऐसा होना वाकई दुखदायी था. यह और भी दुखदायी था कि आज तक इस हत्या का अधिकृत उद्देश्य भी ज्ञात नहीं हो सका. इस दर्दनाक घटना से दहल कर राना बेगम ने टूटने के बजाय स्वयं को महिलाओं की सशक्तिकरण की योजनाओं में व्यस्त रखा. बाद में सरकार ने उन्हें नीदरलैंड और इटली का राजदूत नियुक्त किया. जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार के समय वह पाकिस्तान के आर्थिक मामलों की मंत्री भी रहीं और उस अवधि में उन्हें देश में तमाम आर्थिक सुधार लागू करने के लिए भी जाना गया. पाकिस्तान के तानाशाह शासक राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक़ के शासन काल में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को एक आपराधिक मुकदमें में फांसी की सजा सुनाई गई थी, तो राना बेगम उस फैसले को राजनीति से प्रेरित बता कर खुल कर विरोध और जन आन्दोलन खड़ा करने वाली पहली महिला थीं.
सन १९५१ में उनके पति लियाकत अली खाँ की पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री पद पर रहते ही हत्या हो गई थी। जो व्यक्ति अपनी बेशुमार दौलत और रुतबा भारत में ही छोड़ गया हो, उसके साथ ऐसा होना वाकई दुखदायी था।