अश्रुतपूर्वा II
काव्य-संग्रह : रोज़ बुनता हूँ सपने
लेखक : केशव मोहन पांडे
प्रकाशक : सर्वभाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली
मूल्य: 300
केशवमोहन पांडेय जी का प्रथम काव्य संग्रह ‘रोज़ बुनता हूँ सपने’ सर्वभाषा प्रकाशन,नई दिल्ली से प्रकाशित है। 60 कविताओं का यह संकलन कथ्य और कथन की ताज़गी से भरा है। इन कविताओं में देश, परिवार और गाँव के अनेक रूपों का बहुत सहज और प्रभावशाली चित्रण हुआ है। विशेषतया गाँव अपने विविध आयामों के साथ उजागर हुआ है। उसकी मिट्टी, उसकी प्रकृति, उसके दुःख-दर्द, उसकी पगडंडियां, उसके त्योहार मार्मिक रूप में चित्रित हुए हैं। माता-पिता के संदर्भ में लिखी गई कविताओं का अपना सौन्दर्य है। नारी – जीवन का सत्य भी कई कविताओं में बोलता है। विशेषतया लड़कियों पर लिखित कविताएँ बहुत मार्मिक हैं। इन सारी कविताओं में मनुष्यता की आभा दीप्त हो रही है, प्रेम का राग मुखर हो रहा है।
केशव मोहन पांडेय बहुमुखी प्रतिभासंपन्न साहित्यकार हैं। साहित्य की विभिन्न विधाओं में सृजन करते हुए कविताओं में उनकी प्रतिभा विशेष रूप से मुखरित हुई है। वास्तव में कविता उनकी आत्मा में रची-बसी है। उनके गद्य साहित्य पर भी उनके कवि हृदय की झलक स्पष्ट दिखाई देती है।
‘रोज बुनता हूँ सपने’ संवेदनशील हृदय की भावनाओं की अभिव्यक्ति है। समयानुसार परिवर्तित होतीं सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों का सार्थक चित्रण इन कविताओं में देखने को मिलती हैं। देश,समाज,परिवार, पर्यावरण के उज्जवल भविष्य के लिए अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजाग भावों को शीर्षक रचना में बखूबी व्यक्त किया गया है –
रोज़ बुनता हूँ सपने
अपने ही किसी सुखद भविष्य के लिए नहीं,
बुहार कर
कंकणों को
देने के लिए
कुछ स्वच्छ, सीधा, सपाट राजपथ
अपनी जिम्मेदारियों को
जीवन के विस्तृत पटल को समेटता यह संग्रह अपनी मिट्टी सोंधी महक लिए मानवीयता को समर्पित है।