शकुन्तला शर्मा II
समीक्षा: मैंडी का ढाबा
लेखक: अजय कुमार
प्रकाशक: सर्वभाषा ट्रस्ट
मूल्य: 350
‘मैंडी का ढाबा’ अजय कुमार जी का पहला कहानी संग्रह है। जिसमें 11 कहानियों को संग्रहित किया गया है। ‘मैंडी का ढाबा’ की कहानियों को पढ़कर, कोई भी पाठक अपनी भावनाओं को व्यक्त किए बिना नहीं रह सकता है।
आज के तथाकथित प्रगतिशील युग में, जहां यथार्थ की नग्नता, कुरूपता को उधेड़-उधेड़ कर प्रस्तुत करना ही प्रधान है, वहाँ अजय कुमार जी अपनी कहानियों में जीवन के सार्थक मूल्यों की स्थापना करने में प्रयासशील हैं। लेखक की मान्यता है कि- सब में ऊपर उठने की संभावनाएँ हैं।
वस्तुत: आज के युग में मानवीय संबंधों पर कुछ कहना या लिखना एक विकट समस्या है, इतनी उलझनों से भरा है यह क्षेत्र कि इसमें कुछ सुंदर और सार्थक को प्रतिष्ठित करना अति कठिन है, लेकिन यह सब जानते हुए भी, लेखक ने जिस कुशलता से अपनी कहानियों में, मानवीय संबंधों को उकेरा है उसे पढ़ कर मन प्रसन्न हो जाता है…उन्हें बार बार पढ़ने पर भी मन उकताता नहीं है।
‘मैंडी का ढाबा’ की सभी कहानियाँ आत्मीयता और उच्च मानवीय भावना से भरी हैं। प्रत्येक कहानी अपने कलेवर में एक संदेश या अपनी अनोखी पहचान लिए हैं।
‘दो बहनें’ कहानी में आत्मीय रिश्तों की पहचान और त्याग भावना।
‘ एक रात की मुलाक़ात ‘ में टूटे बिखरे कॉलगर्ल के जिस्म में, ऊपर उठने की चाह से भरा एक धडकता दिल।
‘सुबह से पहले’ में विकट परिस्थितियों में मातृत्व की उदातत्ता का भव्य रूप।
‘ऐतवारनाथ’ में महात्मा शब्द का सच्चा रूप।
‘रागमारवा’ में प्रेम के लिए सही वक्त की पुकार,
‘क्या मैं अब भी दिल में हूँ’ में निर्दोष स्वच्छ प्रेम का स्वरूप।
‘किस्सा-ए-तोता मैना’ में झूठे-सच का दुष्परिणाम।
और पैरोल में विश्वास और बेवफ़ाई का खुला दर्पण,
‘अनामिका एक डायरी’ में एक लड़की की विषम परिस्थितियों में असीम साहस की अनुकरणीय आत्मकथा। और
‘मैंडी का ढाबा’ में एक असफल प्रेम को, सोचने समझने का मौक़ा देना, पुन: आगे बढ़ने से पहले।
अजय जी ने अपनी इन सभी कहानियों में सर्वत्र जीवन को एक नया रूप , एक नयी पहचान एवं नए भाव रूप को उजागर कर, एक सार्थक संदेश देने का प्रयास किया है, और
यदि वे चाहते तो प्रगतिशीलता के नाम पर समाज की असंगतियों और कुरूपताओं को चित्रित कर पाठक को भ्रमित कर सकते थे, ऐसे मोड़ पर लाकर छोड़ सकते थे, जहां अच्छे बुरे की पहचान नहीं, केवल अपना मतलब निकालना ही उद्देश्य है यथार्थ के नाम पर…लेकिन लेखक ने
ऐसा नहीं किया, क्योंकि वे जानते हैं कि ‘कुमति सुमति सब के उर रहहिं’। जिस को बढ़ावा दोगे वही होता है। अत: अपने मतानुसार सर्वत्र उन्होंने कहानी के पात्रों को उठाया है, उन्हें गिरने नहीं दिया । यही अजय जी की कहानियों का ऊर्जस्वित रूप है, जो सबको शुभ और प्रिय है।
इस संग्रह की अंतिम कहानी है ‘टाइम मशीन’ जिसमें, मेरे विचार में,इस संग्रह का मूल विचार या संदेश निहित है-
‘टाइम मशीन’ आत्म कहानी के रूप में लिखी गई है, जहाँ अधिकतर सत्य है, कुछ कल्पना भी है संभवत: जो कहानी के लिए ज़रूरी भी है।
‘टाइम मशीन’ समय के प्रवाह में बहती ज़िंदगी की, बेहद संजीदगी, अटूट विश्वास से भरी प्रेम और वियोग की बहुत मार्मिक कहानी है, जिसकी अंतिम परिणति एक ग़ज़ल से होती है-
‘ ए मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया
मुझको अपने दिले नाकाम पर रोना आया…’
यह कहानी जीवन परिचय की तरह लिखी एक सुंदर प्रेम कहानी के साथ एक प्रतीकात्मक संदेश लिए हुए है।
‘टाइम मशीन’ एक प्रतीक है,वक्त के पहिए का, जिसमें जीवन अधिकतर घिसते-पिटते घायल होता चलता है। लेकिन ज़िंदगी रोने से नहीं चलती ,रोना अंतिम ध्येय नहीं है उसका। वस्तुत: जो बीत गया वह बीत गया ,बस सोचो कि आगे बढ़ते ही जाना है निरन्तर एक सकारात्मक ऊर्जा के साथ। जीवन पर कोई विरामचिह्र खुद न लगाएं। हर क्षण पूरी तरह से जियें, जीवन को सार्थक करते हुए। रचनात्मक रूप देते हुए, जैसा इस कहानी का नायक अंत में कहता है- ”हाँ वाक़ई अब रोने से क्या फ़ायदा”?
और सचमुच में अजय जी ने अब जीवन संदेश से भरी सकारात्मक , ऊर्जापूर्ण कहानियाँ लिख डालीं।
वस्तुत: जब तक कहानी-लेखक अपनी कहानी का एक पात्र नहीं बन जाता, संवेदनाओं की मार्मिक और प्रभावी अभिव्यक्ति नहीं हो पाती।
”मैंडी का ढाबा’ की सभी कहानियाँ अजय कुमार जी के हृदयतल से निकली हैं, इसीलिए हृदय को छूती हैं, प्रेरित करती हैं,कुछ अच्छा सोचने समझने के लिए।
सभी कहानियाँ सकारात्मक ऊर्जा, मनोबल, उत्कृष्ट मूल्यों और आदर्श भावना पर आधारित हैं जिन्हें लेखक ने अपनी पैनी दृष्टि से सुरुचि पूर्ण भाषा, सुंदर शब्द योजना एवम् परिष्कृत शैली से अलंकृत किया है !!
अंत में -प्रत्येक जीवन एक कहानी है जिसमें अनेक संभावनाएँ हैं ऊपर उठने की, जिन्हे हर पाठक इन कहानियों में पढ़ सकता है, उनसे सीख सकता है, उन्हे अपने जीवन में उतार सकता है।