आलेख बाल वाटिका

भारत में फिर लौट आए चीते, कूनो राष्ट्रीय उद्यान में बना गढ़

पूजा त्रिपाठी II

प्रिय बच्चों,

भारत में चीते फिर लौट आए हैं। इस बार उनका ठिकाना है कूनो राष्ट्रीय उद्यान। नामीबिया से लाए चीतों के बारे में तुम खबरों में पढ़ ही चुके होगे। आजादी के बाद 1952 में देश में चीतों के विलुप्त होने की घोषणा की गई थी। उसी वक्त भारत सरकार ने चीतों के संरक्षण के लिए विशेष प्रयास करने का एलान किया था। शुरुआत में ईरान सरकार से शेरों के बदले चीते भारत लाने के लिए बात हुई। परन्तु ईरान में चीतों की कम संख्या और ईरानी और अफ्रीकी चीतों में समानता होने के कारण सरकार ने तय किया कि अफ्रीका से चीतों को भारत लाया जाए। मगर इस योजना को अमल में नहीं लाया जा सका।

साल 2009 में चीतों को दोबारा भारत लाने की नए सिरे से कोशिशें शुरू हुईं। उसके बाद देश में दस अभयारण्य का सर्वेक्षण कर चीतों के लिए उचित वातावरण की तलाश की गई। अंत में मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क को चीतों के रहने के लिए उचित वातावरण माना गया। कुछ समय बाद तुम वहां जाओगे तो चीते देख पाओगे। उम्मीद है इन चीतों का परिवार भविष्य में बढ़ेगा।

बिल्ली, चीता, बाघ, तेंदुआ और शेर ये एक ही प्रजाति के जीव हैं। चीता बिल्लियों का ही परिवार का सदस्य है। समय-समय पर अनुकूल जलवायु न होने के कारण ये सभी जीव अपने ठिकाने, जीने के तौर-तरीके बदलते रहते हैं। दुनिया में चीता की कई प्रजातियां पाई जाती हैं। चीता धरती पर सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर है। एक प्रमुख कार निर्माता कंपनी ने चीते की गति को देखते हुए अपने ब्रांड लोगो में चीता को रखा है। चीते को जगुआर भी कहते हैं। भारत में 70 साल बाद चीतों ने फिर से चहलकदमी शुरू की है। विशेष विमान के जरिए नामीबिया से लाए गए आठ चीते अब मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय प्राणी उद्यान की शोभा बढ़ा रहे हैं।

चीता बिल्लियों के ही परिवार का सदस्य है। समय-समय पर अनुकूल जलवायु न होने के कारण ये सभी जीव अपने ठिकाने, जीने के तौर-तरीके बदलते रहते हैं। चीता धरती पर सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर है। एक प्रमुख कार निर्माता कंपनी ने चीते की गति को देखते हुए अपने ब्रांड लोगो में चीता को रखा है। चीते को जगुआर भी कहते हैं।

चीता शेर की तरह दहाड़ नहीं सकता परन्तु उसकी गुर्राहट शेर की दहाड़ से कम नहीं होती। चीता को उसकी अद्भुत फुर्ती और रफ्तार के लिए जाना जाता है लेकिन उसमें ज्यादा देर तक गति को बनाए रखने की ताकत नहीं होती। वह अपना शिकार गंध से नहीं बल्कि उसकी छाया से करता है। चीता पहले अपने शिकार के पीछे चुपके-चुपके चलता रहता है। लगभग 20-30 मीटर तक चलने के बाद फिर अचानक फर्राटा भर कर अपने शिकार को पकड़ लेता है।

अगर चीता अपने शिकार को पहले हमले में नहीं पकड़ पाता तो उसे छोड़ देता है। लगभग 50 फीसद शिकार उसकी इसी शारीरिक कमी की वजह से छूट जाते हैं। दौड़ने के दौरान चीते के शरीर का तापमान लगभग दो डिग्री तक बढ़ जाता है और थका होने के कारण उसे कुछ समय तक आराम करना पड़ता है जिसकी वजह से उसका शिकार तेंदुए, लकड़बग्घे और जंगली कुत्ते जैसे मांसाहारी जीव लूट लेते हैं यहां तक कि गिद्ध भी उसके शिकार को छीन सकते हैं।

चीते दुबले-पतले तथा लचीले शरीर वाले होते हैं। उनकी रीढ़ की हड्डी तथा सिर छोटा होता है टांगें लंबी तथा पतली होने से बड़े-बड़े कदम बढ़ाने में आसानी होती है। चीते के पैर के तलवे सख्त और अन्य मांसाहारी जीवों की अपेक्षा कम गोल होते हैं। इस जीव के शरीर पर आंख से लेकर मुंह तक विशेष प्रकार की काली धारियां होती हैं और ये धारियां उसे सूर्य की तेज गर्मी से बचाती हैं।

चीता अक्सर जंगली प्रजाति के जीवों का शिकार करता है। हालांकि अत्यधिक भूखा होने पर घरेलू जानवरों का भी शिकार कर सकता है। चीता तीन से चार दिन तक बिना पानी के रह सकता है। यह अक्सर साथ मिल कर शिकार करते है। और अपना ज्यादातर समय सोते हुए बिताते है। दिन में अधिक गर्मी होने से ये बहुत कम सक्रिय रहते हैं। इसकी औसत उम्र 10-15 वर्ष की होती है।

About the author

पूजा त्रिपाठी

पूजा त्रिपाठी सीएसजेएम विश्वविद्यालय कानपुर में एम.ए. की छात्रा हैं और साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहीं हैं । पूजा इन दिनों स्वतंत्र लेखन कर रहीं हैं ।

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