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अब बहुरेंगे प्राचीन कैथी लिपि के दिन

अश्रूतपूर्वा II

नई दिल्ली। ऐतिहासिक कैथी लिपि के दिन अब बहुरने वाले हैं। पटना से आ रही खबरों के मुताबिक बिहार सरकार ने इस लिपि को बढ़ावा देने का फैसला किया है। इसके लिए कई कदम उठाने की बात कही गई है। पुराने समय में उत्तरी और पूर्वी भारत में इस लिपि का काफी प्रचलन था। भारतीय भाषाओं यथा अंगिका, बज्जिका, अवधी, भोजपुरी, मगही, मैथिली और नागपुरी के लिए कैथी लिपि का उपयोग कानूनी, प्रशासनिक और निजी रिकॉर्ड लिखने के लिए किया जाता था।

बिहार सरकार के संस्कृति एवं युवा विभाग के अपर सचिव दीपक आनंद ने बताया है कि राज्य सरकार ने इस लिपि को संरक्षित करने का फैसला किया है। कैथी के विशेषज्ञों के साथ विस्तृत चर्चा के बाद जल्द ही इस लिपि के पुनरुद्धार के लिए एक योजना तैयार की जाएगी।

पुराने समय में उत्तरी और पूर्वी भारत में इस लिपि का काफी प्रचलन था। भारतीय भाषाओं यथा अंगिका, बज्जिका, अवधी, भोजपुरी, मगही, मैथिली और नागपुरी के लिए कैथी लिपि का उपयोग कानूनी, प्रशासनिक कार्यों के लिए किया जाता था।

पिछले सप्ताह लखनऊ मे उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (एनसीजेडसीसी) की शासी निकाय की बैठक में इस पर चर्चा की गई थी। बैठक की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने की थी। इसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड और दिल्ली के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था।

बिहार सरकार के संस्कृति विभाग के अपर सचिव आनंद ने कहा कि बिहार सरकार कैथी लिपि के पुनरुद्धार की योजना पर काम करेगी और जल्द ही इसे लेकर आएगी। उनके मुताबिक एनसीजेडसीसी की शासी निकाय की बैठक में लुप्त होती कलाओं व भाषाओं और राज्यों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को उजागर करने से जुड़े विभिान्न मुद्दों पर चर्चा की गई थी।

विशेषज्ञों के अनुसार मुगल शासन के दौरान कैथी का बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था। ब्रिटिश राज ने 1880 के दशक में इसे बिहार की अदालतों की आधिकारिक लिपि के रूप में मान्यता दी थी। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में व्यापक रूप से प्रयोग की जाने वाली तीन लिपियों में कैथी को तटस्थ माना जाता था क्योंकि इसका इस्तेमाल सभी समुदायों द्वारा किया जाता था। पहले सरकारी कार्यालयों और अदालतों के दस्तावेज ज्यादातर कैथी लिपि में लिखे जाते थे। कैथी का इस्तेमाल बिहार के कुछ जिलों में 1960 के दशक तक किया जाता था। (यह जानकारी मीडिया की खबरों पर आधारित)

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