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दिल्ली में लगाई गई दुर्लभ पांडुलिपियों, चित्रों की प्रदर्शनी

अश्रुतपूर्वा II

नई दिल्ली। पटना की खुदा बख्श लाइब्रेरी में जो लोग गए हैं उन्हें मालूम होगा कि वहां किस तरह दुर्लभ पांडुलिपियां, पुस्तकें और पुरालेखीय तस्वीरें संरक्षित कर रखी गई हैं। मुगल बादशाह शाहजहां के हाथों से लिखा भी आप देख सकते हैं। पिछले दिनों दिल्ली में खुदा बख्श ओरिएंटल पुस्तकालय की ओर से लगाई प्रदर्शनी को देखने काफी संख्या में पुरातत्व प्रेमी आए। इस प्रदर्शनी में कई दुर्लभ पुस्तकें रखी गई थी। इसमें खास तौर से तारीख-ए-खानदान-ए-तैमूरिया की पांडुलिपि शामिल थी।
यह प्रदर्शनी इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के ‘द आईआईसी एक्सपीरिएंस’ का हिस्सा थी। इसमें तस्वीरों, लोक और स्थापत्य कला, नृत्य, संगीत और रंगमंच की प्रस्तुतियां हुईं। इसके अलावा  पुरस्कार प्राप्त अंतरराष्ट्रीय फिल्में भी दिखाई गईं। खुदा बख्श पुस्तकालय की धरोहर में शामिल पांडुलिपियां, पुरालेखीय तस्वीरें, दुर्लभ पुस्तकों के अनुवाद, पांडुलिपियों की डिजिटल प्रतियां पटना स्थित पुस्तकालय से  दिल्ली  लाई गईं थीं।
इस प्रदर्शनी में शामिल धरोहरों में से एक ‘तारीख-ए-खानदान-ए-तैमूरिया’ भी थी, जो मुगल बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर के शासन काल के 22 साल बीत जाने के बाद 1577-78 में लिखी गई थी। यह पांडुलिपि अकेली ऐसी उपलब्ध पुस्तक है जो तैमूर और ईरान तथा भारत में उसके वंशजों के इतिहास, मुगल शासकों-बाबर, हुमायूं और अकबर के बारे में विस्तार से बताती है। यह तैमूर के खानदान का इतिहास है, तैमूर से लेकर अकबर तक का। इसमें अकबर के दरबार में मौजूद कलाकारों के बनाए गए चित्र भी शामिल हैं। कलाकारों के बनाए सौ से ज्यादा चित्र हैं।
कहते हैं कि एक कलाकार रेखाचित्र तैयार करता था और दूसरा उसमें रंग भरता था। इसकी प्रामाणिकता और शाही प्रति के रूप में उसका दर्जा कायम रखते हुए मुगल बादशाह शाहजहां ने पांडुलिपि की शुरू में ही अपने हाथों से एक नोट लिखा था। इसका अनुवाद कुछ इस तरह है- यह हजरत-ए-साहिब किरान (तैमूर) और उनके खानदान की संक्षिप्त जानकारी है और हजरत-ए-अर्श आश्यानी के शासन के 22वें साल तक का इतिहास है। इसे शाह बाबा (अकबर) के शासनकाल में लिखा गया।
‘तैमूरनामा’ के नाम से मशहूर इस पांडुलिपि को 2006 में राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के तहत पांडुलिपि धरोहर के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। हालांकि, यह पुस्तकालय की सबसे मूल्यवान धरोहर है, लेकिन प्रदर्शनी में यह अकेली नहीं थी। अकबर के अनुरोध पर 1602 में ईसा मसीह के जीवन पर लिखी गई दुर्लभ पांडुलिपि ‘मिरात-उल-कुद्स’ भी प्रदर्शनी में रखी गई थी। प्रदर्शनी में फारसी में लिखी पांडुलिपि ‘दीवान-ए-हाफिज’ भी शामिल थी। इसे देखने दूर-दूर से लोग आए। (मीडिया में आई खबर की पुनर्प्रस्तुति)

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