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खतरे में है युवाओं में सुनने की क्षमता

अश्रुतपूर्वा II

नई दिल्ली। इन दिनों लोगों में संगीत सुनने की सुखद लत लगी है। अच्छी बात है। आज की भागदौड़ की जिदंगी में रस घोलता है संगीत। यह अवसाद और निराशा में दवा की तरह काम करता है। कभी-कभी तो आप को रोगमुक्त करने में भी योगदान देता है। ये सब अच्छी बातें हैं। मगर बुरा यह है कि इसे किशोर और युवा जिस तरह कानों में इयरबड और हेडफोन लगा कर संगीत कर सुन कहे हैं, उससे उनकी श्रवणशक्ति कमजोर हो रही है।  
कुछ समय पहले बीजेएम ग्लोबल हेल्थ पत्रिका में छपे एक अध्ययन के अनुसार इयरबड्स और हेडफोन के इस्तेमाल से एक अरब से अधिक किशोर और युवा सुनने की क्षमता खतरे में है। आने वाले सालों में उनकी श्रवणशक्ति कमजोर हो सकती है। अध्ययनकर्ताओं के अंतरराष्ट्रीय दल ने कहा है कि दुनिया भर की सरकारों को इस पर ध्यान देना होगा। श्रवण स्वास्थ्य महत्त्वपूर्ण विषय है। इसको प्राथमिकता में लेना होगा। अब सुरक्षित श्रवण नीतियां बनाने की जरूरत है।

कुछ समय पहले छपे एक अध्ययन के अनुसार इयरबड्स और हेडफोन के इस्तेमाल से एक अरब से अधिक किशोर और युवा सुनने की क्षमता खतरे में है। आने वाले सालों में उनकी श्रवणशक्ति कमजोर हो सकती है। यह दुनिया भर में चिंता का विषय है।

अध्ययनकर्ताओं के दल में अमेरिका के साउथ कैरोलाइना मेडिकल विश्वविद्यालय के शोधकर्ता शामिल थे। इस अध्ययन में 12 से 35 साल के 19,046 लोगों ने हिस्सा लिया। शोध में 33 अध्ययनों का इस्तेमाल किया गया। इन शोधकर्ताओं ने बताया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनिया भर में फिलहाल 43 करोड़ से अधिक लोग सुनने की अक्षमता से पीड़ित हैं। नियमों का पालन ढुलमुल है। स्मार्टफोन, हेडफोन और ईयरबड जैसे उपकरणों के उपयोग के कारण खास तौर से युवा प्रभावित हो रहे हैं। जहां तेज आवाज में संगीत बजाया जाता है, वहां हालत और खराब है।
स्वास्थ्य पत्रिका छपे अध्ययन से पता चलता है कि इयरबड और हेडफोन उपयोग करने वाले अक्सर 105 डेसिबल की बहुत तेज आवाज सुनते हैं। वहीं मनोरंजन स्थलों पर औसत ध्वनि स्तर 104 से 112 डेसिबल तक होता है। यह वयस्कों के लिए 80 डेसिबल और बच्चों के लिए 75 डीबी तक स्वीकृत ध्वनि स्तर से बहुत अधिक है। (मीडिया में आए समाचार की पुनर्प्रस्तुति)

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