अश्रुतपूर्वा II
युवाओं की सोच कितनी बदल गई है। ज्यादातर युवा अब कारपोरेट की नौकरी कर खूब कमाना चाहते हैं या फिर कोई नवउद्यम से अपने लिए नई राह बनाना चाहते हैं। वे दूसरों को रोजगार देने का माध्यम भी बन रहे हैं। मगर गिरिजांश जैसे युवा देश में एक नई लकीर खींच रहे हैं, एक ऐसी लकीर जिस पर शायद ही कोई चलने की हिम्मत जुटा पाए। क्योंकि यह रास्ता मुश्किलों से भरा है। उन्हें अपने उज्ज्वल भविष्य की चिंता नहीं है। उन्हें चिंता है उन बच्चों की, जिन्हें किताबें नहीं मिल पातीं, उन्हें चिंता है उन लोगों की जो सुकून से बैठ कर पढ़ नहीं पाते। चाहे वे घर में हों या घर से बाहर। अब वक्त आ गया है कि देश के युवा लीक से हट कर खींचे एक बड़ी लकीर।
यूपी के युवा गिरिजांश गोपालन ने सोचा भी नहीं होगा कि वे जिस नई परिकल्पना पर काम कर रहे है, उसकी दूर-दूर तक चर्चा होगी। जगह-जगह रास्ते में उनकी बनाई स्ट्रीट लाइब्रेरी दीये की लौ की तरह जाने कितने लोगों के मन को आलोकित कर रही है। आखिरकार किताबों से उनकी दोस्ती रंग लाई। और गिरिजांश भारत में स्ट्रीट लाइब्रेरी के संस्थापक बन गए।
पिछले दिनों इंस्टाग्राम पर लेखिका आयुषी खरे के टॉक शो में गिरिजांश बता रहे थे कि यह काम उन्होंने सुकून के लिए चुना। यही वजह है कि उन्हें पहले सुकून वाली जगहों पर स्ट्रीट लाइब्रेरी खोलने का विचार मन में आया। लोग समंदर या नदी किनारे या फिर खूबसूरत वादियों में सुकून से बैठें तो उनके हाथों में उनकी पसंद की कोई किताब हो। उसके पन्ने पलटें और जीवन के तनाव को कुछ समय के लिए भूल जाएं।
गिरिजांश कालेज के दिनों में खूब यात्रा करते थे। कभी-कभी घर में बताए बिना यात्रा पर निकलते। उन्होंने देश को देखा और समझा। और ये जाना कि लोगों को पर्यटन के दौरान सुकून के पलों में किताबें नहीं मिलतीं। पहाड़ों पर रहने वाले लोगों और बच्चों के लिए पुस्तकों का क्या महत्त्व है, यह भी जाना। उनके लिए वहां कोई पुस्तकालय नहीं है। उन्होंने सोचा कि ग्रामीण इलाकों में क्यों न स्ट्रीट लाइब्रेरी खोली जाए चाहे एक बच्चा ही पाठक क्यों न हो। यह हम सब की जिम्मेदारी है कि बच्चों तक किताबें पहुंचे।
गिरिजांश का सुझाव है कि किताबें आप कबाड़ में न दें। मिल बांट कर पढ़ें। उसे फेंकें नहीं, अच्छा हो कि किसी जरूरतमंद को दे दें। या हमें ही दे दें। उनका कहना है कि सार्वजनिक स्थलों पर लाइब्रेरी खोलने में कई चुनौतियां हैं। अमेरिका, कनाडा और आस्ट्रेलिया में स्ट्रीट लाइब्रेरी की व्यवस्था है। वहां लोग किताबें दान करते हैं। गिरिजांश का ऋषिकेश में यह प्रयोग काफी हद तक सफल रहा। लोगों ने सराहा। विदेशी नागरिकों ने भी स्ट्रीट लाइब्रेरी की प्रशंसा की। वे कहते हैं कि आप स्ट्रीट लाइब्रेरी आइए, किताबें ले जाइए मगर फिर वापस रख दीजिए। या आपके पास कोई किताब है तो यहीं रख दीजिए और यहां जो किताब पसंद है, उसे ले जाइए।
ऋषिकेश में जब आप लक्ष्मण झूला के पास जाते हैं और गंगा किनारे की तरफ घूमते हैं तो आपको एक खंबे से टंगा बाक्स दिखता है। उस बक्से में आपको दिखाई देगी कुछ किताबें। ये हिंदी-अंग्रेजी साहित्य की किताबें भी हैं। कुछ किताबें स्कूली पाठ्यक्रम की भी है। इस बाक्स पर लिखा है- बस्ता पैक स्ट्रीट लाइब्रेरी। यह गिरिजांश गोपालन का अभिनव प्रयोग है।
गिरिजांश बताते हैं कि कई लोग किताब लेकर चले गए। उन्होंने कभी वापस नहीं किया। स्ट्रीट लाइब्रेरी में कई किताबें उन्हें गायब मिलीं। बाक्स खाली मिलता था। उन्होंने कुछ पुरानी फ्रिज को कबाड़ में देने के बजाय बुक बॉक्स बनाया था। लोगों ने इसे पसंद किया। कोई भी पुरानी चीज हो, उसका सदुपयोग करना आना चाहिए। हमने स्ट्रीट लाइब्रेरी के लिए ‘गिव एंड टेक’ का ‘कांसेप्ट’ रखा। यानी आओ अपनी कोई किताब दे जाओ और यहां से पढ़ने के लिए कोई किताब ले जाओ। गिरिजांश कहते हैं कि अगर कोई किताब पढ़ चुके हैं तो क्यों न उसे आप डोनेट कर दें। क्योंकि कई लोग किताब खरीद नहीं पाते। इससे उन्हें सुविधा होगा। यह सिलसिला आगे बढ़ता रहेगा।
गिरिजांश ने बताया कि उन्होंने स्कूलों में भी विद्यार्थियों के लिए लाइब्रेरी की स्थापना की। वहां उन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाली पुस्तकें रखवाई। क्योंकि ऐसी किताबों का पहाड़ों पर और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ा अभाव है। समाज में एक छोटे से बदलाव का केंद्र बिंदु बने गिरिजांश ने अपने छोटे-छोटे सार्वजनिक पुस्तकालयों में इतिहास और साहित्य के अलावा धार्मिक पुस्तकें भी रखवाई हैं ताकि प्रौढ़ और बुजुर्ग पाठकों का भी जुड़ाव बना रहे। मगर उनकी शिकायत है कि यहां भी लोग किताबें अदला-बदली किए बिना ले गए।
गिरिजांश की गुजारिश है कि हम किताबों को बच्चों और आम पाठकों तक आगे बढ़ाएं। उन्हें कबाड़ी वालों के पास न बेचें। पुरानी किताबें जो पढ़ी जा चुकी हैं उन्हें पुस्कालयों को दान में दे दें। उन्होंने बताया कि एक विदेशी युगल को उनका यह प्रयोग बेहद पसंद आया। दूसरे देशों के कुछ नागरिकों ने स्ट्रीट लाइब्रेरी के लिए किताबें दीं। एक बच्ची ने तो बड़ी संख्या में कॉमिक बुक्स दी। वे बताते हैं कि यहां बच्चे आठ-दस किलोमीटर पैदल चल कर पढ़ने आते हैं। आप सोच सकते हैं कि देश में स्ट्रीट लाइब्रेरी की कितनी जरूरत है। खास तौर से दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों और पहाड़ी इलाकों में। … इसकी चिंता कर रहे गिरिजांश जैसे प्रेरक युवाओं की देश को सचमुच जरूरत है।