अमनदीप गुजराल ‘विम्मी’ II
अंधेरा अपनी जगह बना रहा था, सांझ एक खूबसूरत सा समां बांध रही थी। मंद-मंद हवा रीमा के बालों को उड़ाती उसके चेहरे को ढांप रही थी। तर्जनी अंगुली से रीमा ने बालों को हटाते हुए कनखियों से राम को देखा, जो लगातार उसकी तरफ देख रहा था। रीमा ने झट से आंखें झुका लीं। उसने रीमा के कंधे पर हाथ रखा हुआ था। धीरे धीरे कंधे से सरकते हुए वो हाथ गर्दन से होते हुए नीचे की ओर मुड़े …. इस बात की रीमा को उम्मीद नहीं थी। वो फिल्मों वाला प्यार करती थी, उसके सपनों में एक राजकुमार होता था जो दिल के अंदर अपनी एक खास जगह बनाता था।
उस राजकुमार की कल्पना से रीमा मन किसी गुलाबी पंख की तरह हवा में उड़ता, पेट में तितलियों का डेरा लगता, जो उसके गालों को लाल-गुलाबी कर देता था। उसका प्यार खयालों में फिल्मी था, जैसे कि हवा गुनगुनाए और फूल एक दूसरे से प्यार जताएं, कुम्हलाए नहीं। जिसके पास उसे सुरक्षा की अनुभूति हो, पर यह तो बिल्कुल उलट था।
रीमा एक परीक्षा के सिलसिले में रायगढ़ पहुंची थी, और उसे इस बात के अहसास से मन में गुदगुदी हो रही थी कि, जिसे वह इतना प्यार करती है वो उसे मिलने आ रहा है। न जाने कितनी बातों की लंबी लिस्ट बना रखी थी उसने…और मोटरसाइकिल पर घूमने के ख़्याल ने उसे रोमांच से भर दिया था, ठीक वैसा ही जैसा अमिताभ-रेखा, या फिर धर्मेन्द्र-हेमामालिनी का मोटरसाइकिल पर घूमना।
फिल्मों में अपनी हीरोइन के लिए मर मिटने वाले प्रेमी की कल्पना, हवा में बालों का उड़ना, झुमकों का हिलना, बिंदिया का टिमटिमाना, लौंग का लिशकारे मरना……न जाने क्या क्या। रीमा के प्यार में जिस्मानी रिश्ते की कोई जगह नहीं थी, वह तो बस उड़ना चाहती थी, अंतहीन आकाश की ओर एक रेशम की डोर थामे।
परीक्षा खत्म होने के उपरांत बाहर निकलते ही उसे राम मिला, पर रीमा के दिल में एक खलिश जगी जैसे कि कहीं कुछ गलत है। अपने मम्मी-पापा को वह धोखा दे रही है, पर इस उम्र में प्यार सिर्फ उड़ना जानता है। यथार्थ से अलग किसी पहाड़ी पर चढ़ जोर-जोर से चिल्लाना चाहता है मेरा प्यार सच्चा है। दुनिया की सच्चाई से उसका कोई वास्ता नहीं होता, अपना प्रेमी हर समय आंखें बिछाए बैठे रहने वाला शख़्स लगता है, जो चांद सितारों से कम कुछ लाना ही नहीं चाहता।
इस उम्र में हर चीज रंगीन दिखती है, हर जगह इंद्रधनुष उगता सा, एक बार मन हुआ कि राम को मना कर दे, पर एक डर यह भी कि राम की नाराजगी वह सह नहीं सकती। पहली दफा अपने गृह नगर के बाहर राम से मिलना उसे खुशी के साथ विचलित भी कर रहा था, पर हर आशंका को नकार देना चाहती थी।
राम मोटरसाइकिल खड़ी कर, अपलक उसे देख रहा था, तो चलें लंच के लिए। बिना कुछ कहे वह मोटर साइकिल पर बैठ गई कुछ अनमनी सी, कुछ तो था जो उसे रोक रहा था। हम हमेशा दो तर्कों में घिरे रहते हैं, दोनों पलड़े एक बराबर…बस वो वक़्त होता है जहां हम कुछ गलत कर जाते हैं या कुछ सही। या यूं कहें हमारे दिल के विरुद्ध,और वो कसक कभी पीछा नहीं छोड़ती, लगातार चुभती रहती है। उसे भी लगता रहा कुछ गलत है, मगर उसने कुछ कहा नहीं।
वो पहला मौका था, किसी बड़े होटल में खाने का, सब कुछ सपने सा , पीली मद्धम रोशनी, खूबसूरत इंटीरियर, टेबल पर गुलदस्ते में रखे गुलाब, माहौल में रची-बसी मदहोश कर देने वाली खुशबू… सब तो था। बस वो उस जगह पर नहीं थी… जिस बात के लिए राम ने टोका भी था और वह सिर्फ मुस्कुरा कर रह गई थी। राम उसी होटल में ठहरा था, उसने कहा, चलो कमरे में चलते हैं, वहीं आराम से बातें करेंगे और खाना भी वहीं खा लेंगे, पर रीमा ने कहा यहीं बैठते हैं, अच्छा माहौल है।
होटल में बैठे समय का पता ही नहीं चला। शाम घिरने को आई थी और उसे अपनी दोस्त के होस्टल पहुंचना था, शाम सात बजे से पहले। मोटर साइकिल स्टार्ट करने पर वह स्टार्ट ही नहीं हुई, क्योंकि बनवाने का वक्त नहीं था उन्होंने एक रिक्शा लिया यूनिवर्सिटी तक। यूनिवर्सिटी मुख्य गेट से होस्टल तक रास्ते में दूर-दूर स्ट्रीट लाइट लगी थी, जिससे रोशनी का अहसास ही होता था बस। पूरा इलाका शान्त और अंधेरे के कारण डरावना लगने लगा था। यूनिवर्सिटी गेट के अंदर पहुंचते ही, राम की यह हरकत। रीमा का चेहरा गुस्से से तमतमा गया, काटो तो खून नहीं… वह रिक्शे से उतरना चाहती थी। उसने मना किया पर राम पर मानो भूत सवार था, बस किस ही तो कर रहा हूँ, इसमें कौन सी बड़ी बात है…ये तो हक है मेरा।
मम्मी ने निकलने के पहले समझाया भी था, किसी से बात नहीं करना, सहेली के साथ ही जाना और साथ ही वापस भी आना।
मम्मी की बातें बहुत तेजी से उसके दिमाग में कौंधने लगीं, लड़के बहुत जल्दी बड़े हो जाते हैं बेटा, प्यार की आड़ में पहले बदन छूना चाहते हैं, यहां प्यार रूह से नहीं होता, जिस्मानी होता है, जितना दूर रहो उतना अच्छा है। मम्मी आप भी न, मुझे नहीं सुनना, मुझसे ऐसी बातें मत किया करो।
लड़कियों को बहुत संभल कर रहना पड़ता है बेटा, हर बात के सौ-सौ अर्थ लगाए जाते हैं, ध्यान रखना हमेशा।
मम्मी की तो आदत है लेक्चर देने की, हर समय समझाती रहती हैं जैसे कि बच्ची हूं मैं। झुंझलाते हुए रीमा ने कहा, बच्ची नहीं हूँ मम्मी, थोड़ी सी समझ तो मुझमें भी है। मेरे लिए तो मेरी नन्ही परी है मेरी बिटिया, बस हमारा विश्वास बनाए रखना, कह मम्मी ने गले लगा लिया था।
ऐसा नहीं था कि रीमा राम से पहली बार मिल रही थी, पर हां बाहर ये पहली बार था, और ये हरकत…वो इस हरकत की कल्पना नहीं कर सकती थी कि अंधेरे का फायदा इस तरह उठाया जा सकता है।
छोड़ो मुझे, दूर हटो, कह कर उसने धकेल कर परे किया राम को। भैया रिक्शा रोको, अभी इसी वक्त…मुझे उतरना है।
रिक्शे वाले को शायद अहसास हो गया था, उसने रिक्शा रोका तो जरूर, पर राम को वहीं उतार दिया।
आप बैठो बहन, मैं आपको अंदर तक छोड़ कर आता हूं, रीमा को हॉस्टल के गेट पर छोड़ जाते देखता रहा जब तक वह उसकी आंखों से ओझल नहीं हो गई। रीमा की आंखों में अपमान और पश्चाताप के आंसू थे, वह धन्यवाद तक न दे सकी रिक्शा वाले को।
शिखा ने देखते ही कहा, अरे! आ गई तू, कैसा रहा लंच, और शाम, उसकी आंखों में शरारत थी। शिखा कुछ और कहे उससे पहले भरी आंखों और कांपती देह लिए रीमा बिस्तर पर औंधे मुंह गिर पड़ी, लंबी-लंबी सिसकियां बंद होने का नाम नहीं ले रही थीं।
शिखा, क्या प्यार ऐसा होता है? ऐसा लग रहा है कि हजारों कीड़े रेंग रहे हैं मेरे शरीर पर…मैंने मम्मी से कितनी बदतमीजी से बात की जब भी उन्होंने समझना चाहा कहते-कहते फफक-फफक कर रोती रही रीमा।
यूनिवर्सिटी मुख्य गेट से होस्टल तक रास्ते में दूर-दूर स्ट्रीट लाइट लगी थी, जिससे रोशनी का अहसास ही होता था बस। पूरा इलाका शान्त और अंधेरे के कारण डरावना लगने लगा था। यूनिवर्सिटी गेट के अंदर पहुंचते ही, राम की यह हरकत। रीमा का चेहरा गुस्से से तमतमा गया, काटो तो खून नहीं… वह रिक्शे से उतरना चाहती थी। उसने मना किया पर राम पर मानो भूत सवार था…।
शिखा ने कुछ देर तक उसे अपने गले से लगाए रखा, वह भी सन्न थी, ऐसा नहीं होना चाहिए था, यह हर लिहाज से गलत था। फिर उसने कहा…अच्छा सुन। जा नहा ले, …थोड़ा अच्छा लगेगा। कुछ देर बाद रीमा वाशरूम गई, रगड़-रगड़ कर स्नान किया, उसे लगा कई कीड़े एक साथ उसकी गर्दन पर रेंग रहे हैं, लसलसा सा अहसास, पीड़ा जो अंदर रिस रही थी बहने लगी। आंसू उसकी आंखों से बहते हुए पानी में घुलते रहे, पीड़ा का अहसास जब थोड़ा सा हल्का हुआ तो बाहर निकल उसने देखा शिखा खाना कमरे में ले आई थी।
शिखा का मन रखने के लिए बेदिली से थोड़ा सा खाना गटक कर, लेट गई वह। रोते-रोते कब आंख लग गई पता नहीं चला…एक दो दिन बाद वापस अपने गृह नगर आई, मम्मी से लिपटी रही बहुत देर, अरे मेरा बच्चा, चार दिनों में इतना प्यार आ रहा है, जब शादी हो जाएगी तब क्या करेगी?
मुझे अभी शादी नहीं करनी मम्मी, अभी बहुत पढ़ना है। आपका नाम रौशन करना है, आपका विश्वास कायम रखना है।
क्या हुआ बेटा, मुझे बताएगी नहीं।
मम्मी आप बस विश्वास रखना मेरे ऊपर, आपका विश्वास मैं जिंदगी भर नहीं टूटने दूंगी। कह कर आंखें झुका ली रीमा ने।
मम्मी ने फिर कुछ न कहा, अपने काम में लग गई।
रीमा के लौटने की खबर राम तक पहुंच चुकी थी। उधर, ….रीमा का फोन लगातार बजता रहा।