कविता काव्य कौमुदी

पलाश

डॉ. सांत्वना श्रीकांत II

बीते हुए बसंत की याद में…
निर्जन वन की तरह ही
मेरी पीठ पर दहकते पलाश के फूल
आती हैं इनसे पकी हुई फ़सल की गंध
आलिंगन की आंच बिखेरता
अस्त हो रहा सूर्य
सुहागन के आलते जैसा पावन है
तुम्हारा हर एक स्पर्श।
पलाश जो तुम्हारे चुम्बन से
होठों की गोलाई के सहारे
मेरी पीठ पर उग आया है
बड़ी ही शीघ्रता से झरेंगे इसके फूल
लेकिन अगले बसंत के इंतजार में
यह खड़ा रहेगा मौन!

About the author

santwana

सशक्त नारी चेतना के स्वर अपनी कविताओं में मुखरित करने वाली डाॅ सांत्वना श्रीकांत का जन्म जून1990 में म.प्र. में हुआ है।सांत्वना श्रीकांत पेशे से एक दंत चिकित्सक हैं। इनका प्रथम काव्य-संग्रह 'स्त्री का पुरुषार्थ' नारी सामर्थ्य का क्रान्तिघोष है।

इनकी कविताएँ प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं- गगनांचल, दैनिक भास्कर,जनसत्ता आदि में प्रकाशित होती रहती हैं।

साथ ही वे ashrutpurva.com जो कि साहित्य एवं जीवनकौशल से जुड़े विषयों को एक रचनात्मक मंच प्रदान करता है, की संस्थापिका एवं संचालिका हैं।

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