डॉ. सांत्वना श्रीकांत II
प्रेम और नमक
रूपक हैं
दोनों का उपयोग किया गया
ज़रूरत के हिसाब से
“स्वादानुसार”
तेज नमक से छाले हुए
और कम नमक बेस्वाद लगा
जब रिस्ते में फफूँद लगने की
आशंका हुई तो
नमक बढ़ा दिया गया।
और जब तृप्ति की अनुभूति हुई
खारापन बहुत बढ़ गया है
मान कर
अवहेलित कर दिया गया..