अश्रुत पूर्वा II
नई दिल्ली। चमगादड़ों से बेशक आपको डर लगता हो, मगर हमारे जीवन में उनकी भी भूमिका है। वे हमारे लिए कुछ अच्छा काम कर जाते हैं कभी कभी। यों कहें कि वे हमारे मित्र ही हैं। इसलिए उनके जीवन में दखल देना ठीक नहीं। उन्हें अकेला ही रहने दें जहां वे रहना चाहते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर हम चमगादड़ों को अकेला छोड़ दें और उन्हें उनके प्राकृतिक वास में ही रहने दें तो महामारी की आशंका को कम कर सकते हैं।
यह जानकारी लांसेट प्लेनेटरी हेल्थ पत्रिका में छपे एक अध्ययन से सामने आई है। वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी, अमेरिका के साथ मिल कर शोध करने वाले कारनेल यूनिवर्सिटी, अमेरिका के अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि चमगादड़ के विषाणु का सटीक तरीके से कैसे पता लगाया जा सकता है जिसकी वजह से कोविड-19 महामारी आई और 2003 में सार्स महामारी आई।
चमगादड़ों को रेबीज, मारबर्ग फिलोवायरस, हेंड्रा और निपाह पैरामाइक्सोवायरस, मिडल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोना जैसे विषाणुओं का स्रोत माना जाता है। फ्रूट बैट नाम के चमगादड़ को इबोला विषाणु का स्रोत माना जाता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि हम चमगादड़ों से डरें नहीं या उन्हें हटाने या मारने की कोशिश नहीं करें क्योंकि ये सभी गतिविधियां सिर्फ उन्हें तितर-बितर करने में ही मददगार होंगी और इससे उनके जहां-तहां फैलने में मदद मिलेगी।
शोधकर्ताओं ने साफ कहा है कि वास्तव में खतरनाक विषाणुओं का पशुओं से मानव में संचरण होता है, ऐसे में मानवता ही एकमात्र वह जरिया है जिससे एक और महामारी के जोखिम को कम किया जा सकता है। यह भी कहा गया है कि आठ अरब लोगों की आबादी वाले विश्व में हम वन्यजीव एवं हमारे आस-पास के पारिस्थितिकी तंत्र के साथ अपने अंतरसंपर्क को अनदेखा नहीं कर सकते हैं। अगर हम पशुओं से होने वाली अगली महामारी नहीं चाहते हैं तो हमें प्रकृति के साथ मानवीय रिश्ते में बदलाव लाना होगा और इसकी शुरुआत चमगादड़ों से की जा सकती है।
इस अध्ययन में वन्यजीवों और खासकर चमगादड़ों के साथ टूटे रिश्ते को बदलने का आह्वान किया गया है। कॉर्नेल में प्रोफेसर और अध्ययन के मुख्य लेखक स्टीवन ए. ओसोफस्काई ने कहा, अगर हम वास्तव में शिकार, पशुओं का आहार और चमगादड़ों की खरीद-फरोख्त को रोक दें और उन्हें उनकी गुफाओं में तथा उनके प्राकृतिक वास में ही रहने दें, वनों की कटाई को रोक दें या उनका संरक्षण शुरू कर दें, पशुओं के प्राकृतिक वास को बहाल करना शुरू कर दें तो हम एक और महामारी की आशंका को कम कर देंगे। इसमें कोई संदेह नहीं।
अगर हम पशुओं से होने वाली अगली महामारी नहीं चाहते हैं तो हमें प्रकृति के साथ मानवीय रिश्ते में बदलाव लाना होगा और इसकी शुरूआत चमगादड़ों से की जा सकती है।