अश्रुत पूर्वा II
नई दिल्ली। प्यारे बच्चों, पिछले दिनों एक ऐसी खबर आई जिस पर शायद तुम्हारा ध्यान गया हो। वह था आर्कटकि महासागर के बारे में। इसके बारे में एक अनुसांधान के आधार पर कहा गया कि यह अनुमान से लगभग दस साल पहले यानी 2030 के दशक तक समुद्री बर्फ से मुक्त पहली गर्मी का सामना कर सकता है। दरअसल, बच्चों यह दावा पत्रिका नेचर कम्युनिकेशन्स में छपे एक नए अनुसंधान के आधार पर किया गया है।
आर्कटिक महासागर पर अनुसंधान के आधार पर कहा गया है कि आर्कटिक क्षेत्र में गर्मी बढ़ेगी। समुद्री गतिविधियों में बदलाव आएगा। नतीजा आर्कटिक क्षेत्र और उसके बाहर, दोनों ही जगहों पर मानव समाज तथा परिस्थितिकी तंत्र पर असर पड़ेगा।
दूसरी ओर दक्षिण कोरिया, कनाडा और जर्मनी के अनुसंधानकर्ताओं ने भविष्यवाणी की है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन परिदृश्य से इतर आर्कटिक महासागर में बर्फ रहित पहली गर्मी, पहले से लगाए गए अनुमान से एक दशक पहले ही दिख सकती है। यह चिंता की बात है। अनुसंधान में जो बातें कही हैं कि उसने और भी चिंता बढ़ा दी है। इस में कहा गया है कि आर्कटिक महासागर में बर्फ का दायरा हाल के दशकों में लगातार पूरे साल सिकुड़ता जा रहा है। जबकि, इस महासागर में साल की अलग-अलग अवधि में बर्फ का दायरा घटता या बढ़ता है। सर्दियों में आर्कटिक महासागर में अतिरिक्त बर्फ जमने से बर्फ का दायरा बढ़ जाता है, जो मार्च में उच्चतम स्तर पर पहुंच जाता है। गर्मियों में बर्फ पिघलने के कारण सितंबर में इस महासागर में बर्फ का दायरा न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाता है।
अनुसंधान में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और आर्कटिक मानव गतिविधियों के बढ़नेतथा 1980 के दशक में अल चिचोन ज्वालामुखीय विस्फोट के बाद एअरोसोल के उत्सर्जन में कमी को आर्कटिक में पूरे साल बर्फ पिघलने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। (मीडिया में आई खबरों के आधार पर प्रस्तुति)