कुलदीप सिंह भाटी II
कभी कमी नहीं लगी
पिता पर लिखी कविताओं की
नहीं महसूस हुआ कि
पिता पर लिखा गया है कम।
जितनी भी कविताएँ लिखी गईं हैं माँ पर
उनकी पृष्ठभूमि और आधार में रहे हैं पिता
मां के लिए लिखी इन कविताओं में
पिता बनकर रहे सिक्के का दूसरा पहलू
मां के पीछे सम्बल बन संभालते रहे पिता
माँ पर लिखी इन कविताओं को।
जब – जब पढ़ा
माँ के लिए लिखी कविताओं को
तब – तब पाया
इन कविताओं में माँ प्रतिस्थापन है पिता का
जहां स्वयं पिता ने ही
मां को सौंपा है यहां नेतृत्व का भार।
पिता जानते हैं
एक माँ ज़्यादा अच्छे से संवार और संभाल
सकती है सृजन को
इसलिए पिता ने सदैव आगे रखा माँ को।
माँ के लिए लिखी कविताओं को सराहा गया
कि पिता ने ही दिया है इनको सहारा
इसलिए मैं मानता हूं
कहीं कमी नहीं है
पिता पर लिखी कविताओं की।