कविता काव्य कौमुदी

मां तुम्हारी तरह चाहिए शक्ति

डॉ. सांत्वना श्रीकांत II

मैं तुम्हें अपलक देखती हूं
और जब भी देखती हूं तुम्हें
मुझे तुममें स्त्रियों की
संपूर्ण शक्ति का निरंतर
बोध होता है… मां।

सोचती हूं-
तुम्हारी ही तरह सभी स्त्रियों में
क्यों नहीं होती वहीं शक्ति
जिससे शुंभ-निशुंभ को
कभी मारा था तुमने
जिसने ललकारा था तुम्हारे स्त्रीत्व को।

ठीक अपनी ही तरह
ऐसे दूषित पुरुषों को
भस्म करने की
शक्ति क्यों नहीं दी…
हमें कलुषित निगाहों को
परखने की कला तो दी मां
मगर उनसे बचने के लिए
क्यों नहीं दिया
हमें जन्मते ही शस्त्र।

अपना कोई एक शस्त्र तो
दे देती तुम इन पुरुषों से
लड़ने के लिए जो हर घड़ी
और कहीं भी तैयार रहते हैं
स्त्रियों के मान-मर्दन के लिए।  

राक्षसी प्रवृत्तियों के पुरुषों से
लड़ने के लिए अपनी ही
बेटियों को क्यों अकेला
छोड़ दिया… मां।
क्या तुम्हें भरोसा था हम पर?
सच है, हम लड़ सकती हैं
दुनिया भर की आसुरी शक्तियों से
मगर पुरुषों के मन में बैठे
असुरों से कैसे और
कब तक लड़ें…मां?

संकल्प, आत्मविश्वास और
शिक्षा ही हमारे हथियार हैं,
इसे बनाए रखना हमेशा  
मगर हमें शास्त्र के साथ
शस्त्र भी चाहिए मां।  

About the author

santwana

सशक्त नारी चेतना के स्वर अपनी कविताओं में मुखरित करने वाली डाॅ सांत्वना श्रीकांत का जन्म जून1990 में म.प्र. में हुआ है।सांत्वना श्रीकांत पेशे से एक दंत चिकित्सक हैं। इनका प्रथम काव्य-संग्रह 'स्त्री का पुरुषार्थ' नारी सामर्थ्य का क्रान्तिघोष है।

इनकी कविताएँ प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं- गगनांचल, दैनिक भास्कर,जनसत्ता आदि में प्रकाशित होती रहती हैं।

साथ ही वे ashrutpurva.com जो कि साहित्य एवं जीवनकौशल से जुड़े विषयों को एक रचनात्मक मंच प्रदान करता है, की संस्थापिका एवं संचालिका हैं।

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